Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

नारी

 

 

01.
बेटी, बहन
प्रेयषी, पत्नी औ माँ
रुप अनन्या ।
02.
नारी जानती
अवसादों को ठेल
खुशियाँ लाती ।
03.
नर व नारी
सृष्टि के सृजन में
हैं समर्पण ।
04.
नारी जानती
रुलाई को बाहर
आने न देती ।
05.
आज भी नारी
सहमी सहमी सी
साँसें वो लेती ।

 


0
-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ