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पीर के मोती

 

 

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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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पीर के मोती
01.
दर्शन वाणी
भूखे को रोटी देना
प्यासे को पानी ।
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02.
नदी बढ़ती
बेबस हुए तट
रहे सहमे ।
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03.
आँसू भी अब
बनता गिरगिट
ओढ़ा ठहाका ।
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04.
बने जालिम
भाइयों को लड़ाते
राम-रहीम ।
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05.
विष के प्याले
पर घायल करे
उर के छाले ।
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06.
शब्दों के दीप
औ सुर की बाती से
बनते गीत ।
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07.
अश्रु व हास
जीवन जगत के
श्वास प्रश्वास ।
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08.
धरा के लिए
शरद उपहार
मोती श्रृंगार।
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09.
जीवन मेला
कहीं गम का ठेला
कहीं ठहाका ।
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10.
अतीत स्मृति
आँखों ने सहेज ली
पीर के मोती ।
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-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

 

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