प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
----------------------------------
पीर के मोती
01.
दर्शन वाणी
भूखे को रोटी देना
प्यासे को पानी ।
-----0-----
02.
नदी बढ़ती
बेबस हुए तट
रहे सहमे ।
-----0-----
03.
आँसू भी अब
बनता गिरगिट
ओढ़ा ठहाका ।
-----0-----
04.
बने जालिम
भाइयों को लड़ाते
राम-रहीम ।
-----0-----
05.
विष के प्याले
पर घायल करे
उर के छाले ।
-----0-----
06.
शब्दों के दीप
औ सुर की बाती से
बनते गीत ।
-----0-----
07.
अश्रु व हास
जीवन जगत के
श्वास प्रश्वास ।
-----0-----
08.
धरा के लिए
शरद उपहार
मोती श्रृंगार।
-----0-----
09.
जीवन मेला
कहीं गम का ठेला
कहीं ठहाका ।
-----0-----
10.
अतीत स्मृति
आँखों ने सहेज ली
पीर के मोती ।
----00----
-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY