Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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प्रीत के गीत

 

 

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प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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01.
प्रीत के गीत
पढ़ लो नयनों की
बनोगे मीत ।
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02.
स्मृति के वन
महकता चंदन
चहका मन ।
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03.
अश्रु टपके
वियोगिनी रो पड़ी
व्यथा सुनाते ।
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04.
हों न उदास
मन ही बताएगा
अपनी बात ।
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05.
माटी का गंध
मनुज ने पा लिया
अपनापन ।
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06.
गहन वन
स्वयं को ढूँढ रहा
अस्थिर मन ।
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07.
खूँखार वक्त
गिरवी जनमत
नेता के घर ।
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08.
कोमल कली
बनती वही काली
अवला नारी ।
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09.
नारी अस्मिता
पुरुष वर्चस्व में
ढूँढती सीता ।
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10.
चूल्हे की अब
मजदूर के घर
फूटी किस्मत ।
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11.
करो संघर्ष
मिलेंगे देख लेना
नव उत्कर्ष ।
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12.
प्रेम की नशा
सातवां आसमान
हिलने लगा ।
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13.
साहसी दीप
लड़े अंधकार से
पर आदमी ।
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14.
है मजबुरी
दर्द की अंताक्षरी
खेलती नारी ।
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15.
रखो आईना
आत्मकथा अपनी
फिर लिखना ।
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16.
धूप में जले
उम्र भर बादल
माथे पे ढोये ।
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17.
बोये खजूर
जीवन प्रतिकूल
उगे बबूल ।
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18.
नई नवेली
दूल्हन को डँसता
दहेज साँप ।
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19.
उठी लहरें
तट पर आ कर
विलीन होने ।
20.
अनुशासन
पकड़ते हैं बच्चे
कटी पतंग ।
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21.
पीर गहरी
गिरि उर को चीर
बह निकली ।
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22.
होती है देर
भगवान के घर
नहीं अंधेर ।
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23.
मन के तार
झंकृत हो उठी रे
वीणा झंकार ।
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24.
व्यथा अपनी
चरणों को पायल
सुनाती नहीं ।
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25.
हवा बहती
लोरियाँ सुना रही
धान की क्यारी ।
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26.
झील सी आँखें
डुबती आकांक्षाएँ
सोई आशाएँ ।
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27.
नोंचो न उन्हें
सुमन होते योग्य
प्रेम करने ।
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28.
अतीत स्मृति
भविष्य सहेजने
महक पड़ी ।
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29.
शाश्वत सच
सिक्के के दो पहलू
जन्म औ मृत्यु ।
30.
शब्द हैं मित्र
लहरों के छंद में
उकेरे चित्र ।
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