Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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शब्द व शून्य

 

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01.
शून्य को जान
समाहित इसमें
सर्वस्व ज्ञान ।
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02.
शून्य से शून्य
घट शून्य ही शेष
यही विशेष ।
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03.
शब्द समर
झर.. झर.. झरते
भाव निर्झर ।
☆☆☆
04.
शब्द लहरें
ढूँढतीं किनारे में
खोये अर्थों को ।
☆☆☆
05.
शब्द हैं मित्र
लहरों के छंद में
उकेरें चित्र ।
☆☆☆
06.
शब्दों की पीड़ा
कुलबुलाने लगीं
किताबें मेरी ।
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07.
शब्द लहरें
हृदय सागर में
लाती हिलोरें ।
☆☆☆
08.
शब्द व शून्य
सृष्टि के सृजन में
उभय ब्रह्म ।
☆☆☆
□ प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

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