01.
शब्द हैं मित्र
लहरों के छंद में
उकेरे चित्र ।
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02.
शब्दों की पीड़ा
कुलबुलाने लगीं
किताबें मेरी ।
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03.
रहा सतत्
आदमी पहचानना
दुर्गम पथ ।
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04.
सबसे बड़े
हौंसले हैं किनारे
वक्त सहारे ।
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05.
घायल पाखी
उड़ न सकी नभ
पीर सतायी ।
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06.
लगी जो आग
जलता रहा दिल
हुई जलन ।
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07.
चोट पहुँची
यकीनन भीतर
टीसता दर्द ।
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-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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