संघर्ष गीत
प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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01.
संघर्ष गीत
नदी गुनगुनाती
जीना सीखाती ।
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02.
कोई न दूजा
पा लेगा मंजिल तू
चल अकेला ।
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03.
खो जाते अर्थ
"उप" उपसर्ग से
माँ के महत्व ।
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04.
मन ये मेरे
झिलमिलाते स्वप्न
चले बुनते ।
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05.
उदास चक्की
भूखे ने छिन ली
गेहूँ की बालि ।
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06.
रोटी बेलती
चूल्हे की आग में माँ
स्वप्न पकाती ।
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07.
समय नदी
तिनके अलबेले
रुक न पाये ।
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