Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

शतक

 

प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
-----------------------------------

shatak

 

01.
झूठा दर्पण
झूठ को कर रहा
मौन अर्पण ।
-----0-----
02.
हीरे हैं जड़े
जेवर देख शीशे
चटक पड़े ।
-----0-----
03 .
गम का मांझी
किनारे लगा देता
खुशियाँ सारी ।
-----0-----
04.
हिम लाया है
कोहरे की रजाई
धरा ओढ़ ली ।
-----0-----
05.
उपमानों से
रूठते उपमेय
मनाऊँ कैसे ।
-----0-----
06.
काली है रात
सन्नाटे सुना रहे
मौन दास्तान ।
-----0-----
07.
अज्ञान मेघ
गरज रहे ज्यादा
बरसे कम ।
-----0-----
08.
प्रातः की बेला
सेहरा बांध दूल्हा
रवि निकला ।
-----0-----
09.
आया अकाल
किसान के पेट में
लाया भूचाल ।
-----0-----
10.
स्वार्थ कहानी
अंकित हैं उनमें
दर्प निशानी ।
-----0-----
11.
धर्म धांधली
जादूगरी दिखाये
संसद छड़ी ।
-----0-----
12.
रिश्ते सुमन
रौंद दिए उन्होंने
लुटी महक ।
-----0-----
13.
काँच सा मन
देखता रहा स्वप्न
टूटा वहम ।
-----0-----
14.
खुशी वेदना
पल पल जीवन
आते पहुना ।
-----0-----
15.
नेता के पाँव
पाँच वर्ष के बाद
गाँव में ठाँव ।
-----0-----
16.
एकंत मन
लिख रहा हाइकु
प्रकृति संग ।
-----0-----
17.
महकी यादें
सुमन खिल उठे
आशा पनपी ।
-----0-----
18.
छिपता कहाँ
बादलों की ओट में
चाँद सा मुख ।
-----0-----
19.
धान की बाली
महकती कूटिया
खुश कृषक ।
-----0-----
20.
प्यार की बात
अमावस के दिन
चाँदनी रात ।
-----0-----
21.
नभ के माथे
बादल का टूकड़ा
काजल टीका ।
-----0-----
22.
नई खबर
अनजाने ठण्ड से
उठी सिहर ।
-----0-----
23.
स्वप्न के वृक्ष
कोंपलाने लगी हैं
फूल पत्तियाँ ।
-----0-----
24.
पीला सूरज
हरियाली बाँटता
प्रसन्न धरा ।
-----0-----
25.
हिम का हाथी
पर पिघला देती
धूप गठरी ।
-----0-----
26.
अंधे के पास
दिवा हो या हो रात
एक ही बात ।
-----0-----
27.
गुलाब खिले
डाली पर उसकी
काँटे नूकीले ।
-----0-----
28.
धँसते जाते
रेतीले समय पे
फैसले पैर ।
-----0-----
29 .
प्यास बुझाये
प्याऊ खोले बादल
मेघ बरसे ।
-----0-----
30.
दुःख हरती
मरहम की पट्टी
वक्त लगाती ।
-----0-----
31.
विनाश काल
टूट गया विश्वास
संशय द्वार ।
-----0-----
32.
आया चुनाव
चूम रहा है गाँव
नेता के पाँव ।
-----0-----
33.
आँखों के मेघ
मोती बरसा रहे
आँसू छलके ।
-----0-----
34.
दिन है दूल्हा
दूल्हन सज रही
चाँदनी रात ।
-----0-----
35.
खाने दिखाने
रखे हैं दोनों दाँत
वाह इंसान ।
-----0-----
36.
दुःख घेरते
भगवान के नाम
याद दिलाते ।
-----0-----
37.
चाँद रो रहा
शरद ओस आँसू
टपका रहा ।
-----0-----
38.
देखे चेहरा
मन देख न पाया
दर्पण झूठा ।
-----0-----
39.
भीतर राज
गहरी खामोशी है
छिपी आवाज ।
-----0-----
40.
लाख मिलाएँ
किनारे से किनारे
कब हैं मिले ?
-----0-----
41 .
मोम पिघला
बत्ती का जल जाना
सह न सका ।
-----0-----
42.
नेता रावण
लोकतंत्र सीता का
करे हरण ।
-----0-----
43.
उर में चूभे
नफरत के कील
भाव रो पड़े।
-----0-----
44.
सफर छोटे
पर पैर सबके
बेड़ियाँ बंधे ।
-----0-----
45.
सच की आग
सख्त झूठा लोहा भी
पिघला आज ।
-----0-----
46.
प्यारे बच्चों को
तारे गिनवा रहा
चाँद शिक्षक ।
-----0-----
47.
भूखी है बिल्ली
मत बाँधो उसके
गले में घण्टी ।
-----0-----
48.
पीर बादल
सदा नैनों में छाये
ऋतु न माने ।
-----0-----
49.
नदी के रेत
सपनों को हमारे
रखे सहेज ।
-----0-----
50.
महान झूठ
सबने रट लिया
बदला युग ।
-----0-----
51.
कार्तिक भोर
धान की पत्तियों ने
थाम ली ओस ।
-----0-----
52.
बादल प्यारे
प्यासे देख जग को
सच रो पड़े ।
-----0-----
53.
प्रेम के घाव
कोई कुरेदे फिर
उठते टीस ।
-----0-----
54.
हँसी की ओट
छिपा नहीं सकते
गमों के खोट ।
-----0-----
55.
विकट रात
एक दीया बताये
उसे औकात ।
-----0-----
56.
कर लगन
होगा वश में तेरा
चंचल मन ।
-----0-----
57.
दूर बहने
लहरों में समाया
मुझे ही मैंने ।
-----0-----
58.
मौत की आंधी
मिट्टी की इमारत
ढहा ले जाती ।
-----0-----
59.
देखे हमने
विश्वास में जहर
घोले अपने ।
-----0-----
60.
कली बुलाई
भौंरे गुनगुनाये
बहार लाये ।
-----0-----
61.
जग सो जाता
अकेले वो जागता
घाव टीसता ।
-----0-----
62.
गहरे भाव
अविरल प्रवाह
मिली न थाह ।
-----0-----
63.
गाँव का कद
पुराना बरगद
बताता सच ।
-----0-----
64.
रिश्तों की क्यारी
लहराती फसलें
बालि महकी ।
-----0-----
65 .
लोरी के बीज
नींद वृक्ष उगाने
बोतीं माताएँ ।
-----0-----
66.
धरा को सदा
ऊँचा गगन खड़ा
सिर झुकाया ।
-----0-----
67.
फँसे तिनके
आँसू के मौसम थे
रुक न सके ।
-----0-----
68 .
ममता माँ की
आँचल में उसकी
सदा छलकी ।
-----0-----
69.
गाँव-शहर
इंसानियत यहाँ
हुई बेघर ।
-----0-----
70.
दीप जो जला
अज्ञान का अंधेरा
भाग निकला ।
-----0----
71.
दूनिया गोल
जग के लोग पढ़े
यही भूगोल ।
-----0-----
72.
व्यर्थ का अर्थ
ढूँढने में हो जाते
समय नष्ट ।
-----0-----
73.
ज्ञान का नूरी
अज्ञानता गुरुर
भगाता दूर ।
-----0-----
74.
लिखे नसीब
कौन किसके होंगे
कल करीब ।
-----0-----
75.
नारी पहेली
वो भूल भूलैया की
है पगडण्डी ।
-----0-----
76.
सहज मिली
भाव से परिणति
कल्प से कृति ।
-----0-----
77.
आत्मा की व्याह
परमात्मा के संग
होता निर्वाह ।
-----0-----
78.
लक्ष्य की प्राप्ति
आशाएँ आदमी को
पास खींचती ।
-----0-----
79.
फूल गुलाब
हिफाजत के लिए
काँटों का साथ ।
-----0-----
80.
अश्रु के लिये
नहीं ऋतु अपेक्षा
बहे हमेशा ।
-----0-----
81.
झुका क्षितिज
सोंधी महक पाने
मिट्टी की ओर ।
-----0-----
82.
दूर न होती
दीया तले पलती
ये अंधियारी ।
-----0-----
83.
गहरा पानी
कागजी नाव होती
ये जिंदगानी ।
-----0-----
84.
पत्थर नहीं
आदमी की तरह
होते निर्दय ।
-----0-----
85.
संयम छंद
महके ज्यों संबंध
हुये स्वच्छंद ।
-----0-----
86.
ले आता होली
मस्ती भरे मन में
हँसी ठिठोली ।
-----0-----
87.
बासंती गीत
महकी अमराई
कोयल गाती ।
-----0-----
88.
प्रेम के रंग
भीग जाते सबके
तन व मन ।
-----0-----
89.
हवा ले आती
जीवन में जगाती
मधुर प्रीति ।
-----0-----
90.
आँसू हँसते
नये गीत सुनाते
मुस्कात रोते ।
-----0-----
91.
सनन..सन.
गौनगुनाती हुई
बही पवन ।
-----0-----
92.
आया शरद
मोती बिखर पड़े
रोया है चाँद ।
-----0-----
93.
भाव सहारे
उम्मीद आसमान
छूना आसान ।
-----0-----
94.
खुदा तो देता
रखना था सहेज
गँवाते हम ।
-----0-----
95.
भाव उमड़े
कटे पंख पाखी के
फिर से जुड़े ।
-----0-----
96.
प्रीत की आस
सदा प्रिय उसके
रहता पास ।
-----0-----
97.
साँसों की रस्सी
जीवन के कदम
मापती चली ।
-----0-----
98.
मेघ गरजा
नभ का जल कूप
छलक पड़ा ।
-----0-----
99.
धूप ही धूप
जीवन के पड़ाव
कहीं न छाँव ।
-----0-----
100.
सत्य-असत्य
मर्यादा तोड़ देते
उभय पक्ष ।
----00----

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ