प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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01.
झूठा दर्पण
झूठ को कर रहा
मौन अर्पण ।
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02.
हीरे हैं जड़े
जेवर देख शीशे
चटक पड़े ।
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03 .
गम का मांझी
किनारे लगा देता
खुशियाँ सारी ।
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04.
हिम लाया है
कोहरे की रजाई
धरा ओढ़ ली ।
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05.
उपमानों से
रूठते उपमेय
मनाऊँ कैसे ।
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06.
काली है रात
सन्नाटे सुना रहे
मौन दास्तान ।
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07.
अज्ञान मेघ
गरज रहे ज्यादा
बरसे कम ।
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08.
प्रातः की बेला
सेहरा बांध दूल्हा
रवि निकला ।
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09.
आया अकाल
किसान के पेट में
लाया भूचाल ।
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10.
स्वार्थ कहानी
अंकित हैं उनमें
दर्प निशानी ।
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11.
धर्म धांधली
जादूगरी दिखाये
संसद छड़ी ।
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12.
रिश्ते सुमन
रौंद दिए उन्होंने
लुटी महक ।
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13.
काँच सा मन
देखता रहा स्वप्न
टूटा वहम ।
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14.
खुशी वेदना
पल पल जीवन
आते पहुना ।
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15.
नेता के पाँव
पाँच वर्ष के बाद
गाँव में ठाँव ।
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16.
एकंत मन
लिख रहा हाइकु
प्रकृति संग ।
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17.
महकी यादें
सुमन खिल उठे
आशा पनपी ।
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18.
छिपता कहाँ
बादलों की ओट में
चाँद सा मुख ।
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19.
धान की बाली
महकती कूटिया
खुश कृषक ।
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20.
प्यार की बात
अमावस के दिन
चाँदनी रात ।
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21.
नभ के माथे
बादल का टूकड़ा
काजल टीका ।
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22.
नई खबर
अनजाने ठण्ड से
उठी सिहर ।
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23.
स्वप्न के वृक्ष
कोंपलाने लगी हैं
फूल पत्तियाँ ।
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24.
पीला सूरज
हरियाली बाँटता
प्रसन्न धरा ।
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25.
हिम का हाथी
पर पिघला देती
धूप गठरी ।
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26.
अंधे के पास
दिवा हो या हो रात
एक ही बात ।
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27.
गुलाब खिले
डाली पर उसकी
काँटे नूकीले ।
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28.
धँसते जाते
रेतीले समय पे
फैसले पैर ।
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29 .
प्यास बुझाये
प्याऊ खोले बादल
मेघ बरसे ।
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30.
दुःख हरती
मरहम की पट्टी
वक्त लगाती ।
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31.
विनाश काल
टूट गया विश्वास
संशय द्वार ।
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32.
आया चुनाव
चूम रहा है गाँव
नेता के पाँव ।
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33.
आँखों के मेघ
मोती बरसा रहे
आँसू छलके ।
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34.
दिन है दूल्हा
दूल्हन सज रही
चाँदनी रात ।
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35.
खाने दिखाने
रखे हैं दोनों दाँत
वाह इंसान ।
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36.
दुःख घेरते
भगवान के नाम
याद दिलाते ।
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37.
चाँद रो रहा
शरद ओस आँसू
टपका रहा ।
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38.
देखे चेहरा
मन देख न पाया
दर्पण झूठा ।
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39.
भीतर राज
गहरी खामोशी है
छिपी आवाज ।
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40.
लाख मिलाएँ
किनारे से किनारे
कब हैं मिले ?
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41 .
मोम पिघला
बत्ती का जल जाना
सह न सका ।
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42.
नेता रावण
लोकतंत्र सीता का
करे हरण ।
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43.
उर में चूभे
नफरत के कील
भाव रो पड़े।
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44.
सफर छोटे
पर पैर सबके
बेड़ियाँ बंधे ।
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45.
सच की आग
सख्त झूठा लोहा भी
पिघला आज ।
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46.
प्यारे बच्चों को
तारे गिनवा रहा
चाँद शिक्षक ।
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47.
भूखी है बिल्ली
मत बाँधो उसके
गले में घण्टी ।
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48.
पीर बादल
सदा नैनों में छाये
ऋतु न माने ।
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49.
नदी के रेत
सपनों को हमारे
रखे सहेज ।
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50.
महान झूठ
सबने रट लिया
बदला युग ।
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51.
कार्तिक भोर
धान की पत्तियों ने
थाम ली ओस ।
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52.
बादल प्यारे
प्यासे देख जग को
सच रो पड़े ।
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53.
प्रेम के घाव
कोई कुरेदे फिर
उठते टीस ।
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54.
हँसी की ओट
छिपा नहीं सकते
गमों के खोट ।
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55.
विकट रात
एक दीया बताये
उसे औकात ।
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56.
कर लगन
होगा वश में तेरा
चंचल मन ।
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57.
दूर बहने
लहरों में समाया
मुझे ही मैंने ।
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58.
मौत की आंधी
मिट्टी की इमारत
ढहा ले जाती ।
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59.
देखे हमने
विश्वास में जहर
घोले अपने ।
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60.
कली बुलाई
भौंरे गुनगुनाये
बहार लाये ।
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61.
जग सो जाता
अकेले वो जागता
घाव टीसता ।
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62.
गहरे भाव
अविरल प्रवाह
मिली न थाह ।
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63.
गाँव का कद
पुराना बरगद
बताता सच ।
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64.
रिश्तों की क्यारी
लहराती फसलें
बालि महकी ।
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65 .
लोरी के बीज
नींद वृक्ष उगाने
बोतीं माताएँ ।
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66.
धरा को सदा
ऊँचा गगन खड़ा
सिर झुकाया ।
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67.
फँसे तिनके
आँसू के मौसम थे
रुक न सके ।
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68 .
ममता माँ की
आँचल में उसकी
सदा छलकी ।
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69.
गाँव-शहर
इंसानियत यहाँ
हुई बेघर ।
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70.
दीप जो जला
अज्ञान का अंधेरा
भाग निकला ।
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71.
दूनिया गोल
जग के लोग पढ़े
यही भूगोल ।
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72.
व्यर्थ का अर्थ
ढूँढने में हो जाते
समय नष्ट ।
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73.
ज्ञान का नूरी
अज्ञानता गुरुर
भगाता दूर ।
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74.
लिखे नसीब
कौन किसके होंगे
कल करीब ।
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75.
नारी पहेली
वो भूल भूलैया की
है पगडण्डी ।
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76.
सहज मिली
भाव से परिणति
कल्प से कृति ।
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77.
आत्मा की व्याह
परमात्मा के संग
होता निर्वाह ।
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78.
लक्ष्य की प्राप्ति
आशाएँ आदमी को
पास खींचती ।
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79.
फूल गुलाब
हिफाजत के लिए
काँटों का साथ ।
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80.
अश्रु के लिये
नहीं ऋतु अपेक्षा
बहे हमेशा ।
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81.
झुका क्षितिज
सोंधी महक पाने
मिट्टी की ओर ।
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82.
दूर न होती
दीया तले पलती
ये अंधियारी ।
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83.
गहरा पानी
कागजी नाव होती
ये जिंदगानी ।
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84.
पत्थर नहीं
आदमी की तरह
होते निर्दय ।
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85.
संयम छंद
महके ज्यों संबंध
हुये स्वच्छंद ।
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86.
ले आता होली
मस्ती भरे मन में
हँसी ठिठोली ।
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87.
बासंती गीत
महकी अमराई
कोयल गाती ।
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88.
प्रेम के रंग
भीग जाते सबके
तन व मन ।
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89.
हवा ले आती
जीवन में जगाती
मधुर प्रीति ।
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90.
आँसू हँसते
नये गीत सुनाते
मुस्कात रोते ।
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91.
सनन..सन.
गौनगुनाती हुई
बही पवन ।
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92.
आया शरद
मोती बिखर पड़े
रोया है चाँद ।
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93.
भाव सहारे
उम्मीद आसमान
छूना आसान ।
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94.
खुदा तो देता
रखना था सहेज
गँवाते हम ।
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95.
भाव उमड़े
कटे पंख पाखी के
फिर से जुड़े ।
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96.
प्रीत की आस
सदा प्रिय उसके
रहता पास ।
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97.
साँसों की रस्सी
जीवन के कदम
मापती चली ।
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98.
मेघ गरजा
नभ का जल कूप
छलक पड़ा ।
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99.
धूप ही धूप
जीवन के पड़ाव
कहीं न छाँव ।
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100.
सत्य-असत्य
मर्यादा तोड़ देते
उभय पक्ष ।
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