01.
सूखे तिनके
पतझर में जीते
मौज मनाते ।
---0---
02.
मत रो नारी
पूजेगी एक दिन
दूनिया सारी ।
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03.
बिगड़ मत
सुधरेगी दूनिया
बहक मत ।
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04.
फिरता मारा
ढूँढ रहा कस्तूरी
मृग बेचारा ।
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05.
व्यर्थ के अर्थ
ढूँढने में हो जाते
समय नष्ट ।
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- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
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