Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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टूटे रे मन

 

01.
घुटते दम
देश अशांत देख
टूटे रे मन ।
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02.
सरोवर में
देख साया चाँद की
खिला कुमुद ।
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03.
भव सरिता
मन हुआ नाविक
खे रहा नाव ।
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04.
व्यथा उमड़ी
वेदना आकाश में
ले उड़ चली ।
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05.
हँसे अतीत
रुलाए वर्तमान
अनागत को ।
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-प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

 

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