Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ओस प्रसंग

 

01.
ओस के भाग
गले मिली पंखुरी
धन्य ये साथ ।
02.
ओस से स्नात
ठिठुरी पंखुरियाँ
ताजी गुलाब ।
03.
सुबह खास
रश्मि पी गयी ओस
मिटाती प्यास ।
04.
ओस की बूँद
पंखुरी पर लिखी
धूप के नाम ।
05.
भोर का बिम्ब
पंखुड़ी बन चली
ओस प्रसंग ।
06.
कविता प्यारी
हरी पत्तियों पर
ओस सिहरी ।
07.
भोर का रुप
कलरव मधुर
नव स्वरुप ।
08.
धरा आकाश
कोहरे की चादर
कोमल पाश ।
09.
भोर का रुप
मुस्कान बाँट रही
कोमल धूप ।
10.
सर्द ये रात
जलती लकड़ियाँ
तपाते हाथ ।
11.
रातें ठिठुरी
हरी दूब पे मोती
निस्तब्ध जड़ी ।
12.
हिमानी प्रीत
टपकती बूँदें ये
शाश्वत गीत ।
13.
बहता जल
करता कल-कल
गीत कोमल ।
14.
चाहती धूप
ठण्ड की आगोश में
विहग मूक ।
15.
शीत गगन
नरम धूप खिली
भोर सदन ।
16.
खिले सुमन
बाँचती चली हवा
मृदु सुगंध ।
17.
ओस झरती
पत्तियों पे ठहर
गीत सुनाती ।
18.
ठिठुरा दिन
ले आयी है रजनी
शीत सघन ।
19.
टपकी ओस
जड़ गये हैं मोती
तृण की नोंक ।
20.
बैठ अलाव
सूख जाते मन के
गीले ये घाव ।
21.
खिले सुमन
छंदों के बंध बंधे
गीत प्रीतम ।
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- प्रदीप कुमार दाश "दीपक"

 

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