| Dec 18, 2019, 7:48 PM (4 days ago) |
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"परछाइयाँ " (हाइकु संग्रह) हाइकुकार : प्रदीप कुमार दाश "दीपक"
प्रकाशक : हर्फ प्रकाशन, नई दिल्ली
ISBN - 978-93-87757-24-0 प्रथम संस्करण - 2018,
पुस्तक मूल्य - 200/-, पृष्ठ -186
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तपस्या का फल है प्रदीप जी का हाइकु संग्रह -"परछाइयाँ"
समीक्षक : अविनाश बागड़े
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बारह वर्ष की तपस्या का फल है "परछाइयाँ" । यकीनन तपस्वी कोई दीपक सा ही व्यक्तित्व हो सकता है । अपने श्रेष्ठ सत्ताईस हिन्दी हाइकु की परछाई को सत्रह भारतीय भाषाओं एवं सात बोलियों में पाठकों तक पहुंचाना निश्चित तौर पर एक दुरुह ही कार्य है जिसे आदरणीय प्रदीप कुमार दाश दीपक जी ने छत्तीसगढ़ राज्य के रायगढ़ जैसे छोटे से शहर के सांकरा में बैठ कर साकार किया । दुरुह इसलिये कि हिंदी या अंग्रेजी टंकण तो आसानी से हो जाये मगर देवनागरी से हटकर दूसरी लिपि से जूझना यानी हिमालय रुदन जैसा ही ।
बारह वर्षों में 27 हाइकु उसके समर्थन में खड़े सार्थक रेखाचित्र और साथ में विभिन्न भाषा बोलियों के देशभर के साहित्य हस्ताक्षरों को जोड़कर काम करना यानी... शब्द नहीं इस श्रम के लिये ।
किस हाइकु पर उंगली रखूं समझ से परे है ।
संसार मौन
गूंगे का व्याकरण
पढ़ेगा कौन ?
बस नि:शब्द करता 5-7-5 अक्षरों का लाजवाब संयोजन और साथ में देवनागरी में ही अन्य भाषाओं का भावानुवाद... बेहतरीन ।
सत्य से साक्षात्कार करता ये हाइकु देखिए -
रखो आईना
आत्मकथा अपनी
फिर लिखना ।
सीधा-सीधा आत्मकथ्य को बाजार में परोसने वालों को ललकारता 5-7-5 का अस्त्र ।
मन को हाइकु से जोड़कर लिखे इस हाइकु की बानगी भी देखिये ।
आदमी पंक्ति
मन एक हाइकु
छंद-प्रकृति ।
छोटे से इस काव्य विधान से कितनी बड़ी बात प्रदीप जी ने कर दी । जी बिल्कुल सच है...
शास्वत सच
सिक्के के दो पहलू
जन्म औ मृत्यु ।
ज्ञान की कितनी बड़ी बात देखिये -
ज्ञान का सूर
अज्ञान का अंधेरा
करता दूर ।
बिम्बों के माध्यम से हाइकु को सशक्त बनाकर बखूबी प्रस्तुत किया है इस काव्य में ।
धूप की थाली
बादल मेहमान
सूरज रोटी ।
वैसे ही हाइकु को तीनों दशाओं में उतारने का ये प्रयास -
हँसा अतीत
रुलाए वर्तमान
भविष्यत को ।
अश्कों के बदलते स्वरूप को उकेरता ये एक हाइकु -
मुस्कान रोये
ठिठोली कर रहे
आंसू मुझसे ।
अपने हाइकु भंडार से 27 को ही चित्रों के साथ पेश कर उनका देवनागरी लिप्यांतर तत्पश्चात मूल लिपि में भी उनका प्रकाशन यानी 12 वर्षों का एक समग्र प्रयास सफलता की मंजिल यानी परछाइयां तक । निश्चित रूप से यह हाइकु ग्रंथ एक मील का पत्थर साबित होगा "न भूतो ना भविष्यति" ऐसा प्रयास है ये ।
सफलता के साथ अनुवादक चिंतकों ने जो समां बांधा वो अतुलनीय होते हुए अनुकरणीय भी है ।
प्रदीप जी ऐसे ही हाइकु और इस परिवार के बाकी काव्य स्वरूपों को भी कीर्तिमानों के पथ पर डालकर सृजनकर्ताओं के मनोबल को आसमान की ऊंचाइयां छुआने में हमेशा की तरह कटिबद्ध रहेंगे, यही आशा और विश्वास ।
कलेवर ही नहीं तेवर भी लाजवाब है , मोहक मुद्रण, भाषा में प्रवाह, उत्तम प्रकाशन यही है "परछाइयां" ।
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- समीक्षक : अविनाश बागड़े
84, अविशा, जैतवन, शास्त्री ले-आउट,
खामला, नागपुर-440025, (महाराष्ट्र)
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