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Dr. Srimati Tara Singh
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15 अगस्त – स्वतंत्रता दिवस तथा पवित्र रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर

 

15 अगस्त – स्वतंत्रता दिवस तथा पवित्र रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर

देशविदेश के करोड़ों भारतीयों को मेरी ओर से हार्दिक बधाइयाँ!

‘‘भैया मेरे राखी के बन्धन को  भुलाना’’

तू मेरा कर्मातू मेरा धर्मातू मेरा अभिमान है!

‘‘हर करम अपना करेंगे वतन तेरे लिएहम जीएगे और मरेंगे  वतन तेरे लिए!’’

– प्रदीप कुमार सिंहलखनऊ

            यह एक शुभ संयोग है कि रक्षा बंधन पर्व इस वर्ष भारत की आजादी के दिवस 15 अगस्त को पड़ा है। सभी देशवासियों तथा विश्व भर में भारतीय संस्कृति का परचम लहराने वाले प्रवासी भारतीयों को मेरी ओर से 15 अगस्त स्वतंत्रता दिवस तथा रक्षा बंधन की हार्दिक बधाइयाँ हैं। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता।

            सत्य के महान खोजी महात्मा गांधी ने 9 अगस्त 1942 को ‘करो या मरो’ का ऐतिहासिक निर्णय लिया था। उन्होंने एक सच्चे राष्ट्र पिता के अधिकार से भरी दृढ़ता तथा कठोरता से भरकर अपने प्रिय पुत्रों के समान देशवासियों से कहा था कि हर व्यक्ति को इस बात की खुली छूट है कि वह अहिंसा पर आचरण करते हुए अपना पूरा जोर लगाये। हड़तालों और दूसरे अहिंसक तरीकों से पूरा गतिरोध अंग्रेजी शासन के खिलाफ पैदा कर दीजिए। सत्याग्रहियों को मरने के लिए कि जीवित रहने के लिएघरों से निकलना होगा। उन्हें मौत की तलाश में फिरना चाहिए और मौत का सामना करना चाहिए। जब लोग मरने के लिए घर से निकलेेंगे तभी मानवता बचेगी। अब बस एक नारा ही हमारे अंदर प्रत्येक क्षण गंुजे ‘करेंगे या मरेंगे स्वतंत्रता के हर अहिंसावादी सिपाही को चाहिए कि वह कागज या कपड़े के एक टुकड़े पर ‘करो या मरो’ का नारा लिखकर उसे अपने पहनावे पर चिपका लेताकि सत्याग्रह करतेकरते शहीद हो जाय तो उसे उस निशान के द्वारा दूसरे लोगों से अलग पहचाना जा सकेजो अहिंसा में विश्वास नहीं रखते। 

            रक्षाबंधन सामाजिकपौराणिकधार्मिक तथा ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पवित्र बंधन जिसे जनमानस में रक्षाबंधन के नाम से सावन मास की पूर्णिमा को भारत में ही नही वरन् नेपाल तथा मारीशस में भी बहुत उल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन अर्थात रक्षा की कामना लिए ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टि पर विद्यमान है। इन्द्राणी का इन्द्र के लिए रक्षा कवच रूपी धागा या रानी कर्मवति द्वारा रक्षा का अधिकार लिए पवित्र बंधन का हुमायु को भेजा पैगाम और सम्पूर्ण भारत में बहन को रक्षा का वचन देता भाईयों का प्यार भरा उपहार हैरक्षाबंधन का त्योहार। रक्षाबंधन की परंपरा महाभारत में भी प्रचलित थीजहाँ श्री कृष्ण की सलाह पर सैनिकों और पांडवों को रक्षा सूत्र बाँधा गया था।

            आपसी सौहार्द तथा भाईचारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरूष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। राजस्थान में ननंद अपनी भाभी को एक विशेष प्रकार की राखी बाँधती है जिसे लुम्बी कहते हैं। कई जगह बहनंे भी आपस में राखी बाँध कर एक दूसरे को सुरक्षा का भरोसा देती हैं। इस दिन घर में नाना प्रकार के पकवान और मिठाईयों के बीच घेवर (मिठाईखाने का भी विशेष महत्व होता है।

            रक्षा सूत्र के साथ अनेक प्रान्तों में इस पर्व को कुछ अलग ही अंदाज में मनाते हैं। महाराष्ट्र में ये त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है। तमिलनाडुकेरलमहाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारत में इस पर्व को अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानों पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है।

            सारी मानव जाति के हमदर्द तथा विश्वविख्यात कविवर रविन्द्रनाथ टैगोर ने तोरक्षाबंधन के त्योहार को स्वतंत्रता के धागे में पिरोया। उनका कहना था कि राखी केवल भाईबहन का त्योहार नहीं है अपितु ये इंसानियत अर्थात मानवता का पर्व हैभाईचारे का पर्व है। जहाँ जाति और धार्मिक भेदभाव भूलकर हर कोई एक दूसरे की रक्षा कामना हेतु वचन देता है और रक्षा सूत्र में बँध जाता है। जहाँ भारत माता के पुत्र आपसी धार्मिक भेदभाव भूलकर भारत माता की रक्षा और उसके उत्थान के लिए मिलजुल कर प्रयास करते हैं।

            रक्षा बंधन को धार्मिक भावना से बढ़कर राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। भारत जैसे विशाल देश में बहिनें सीमा पर तैनात सैनिकों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं स्वयं की सुरक्षा के साथ उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। स्कूली छात्रायें तथा स्वयं सेवी संगठन देश की सुरक्षा में तत्पर देश के जवानों के लिए बड़े ही स्नेह  गर्व के साथ राखियाँ भेजते हैं।

            देश की सुरक्षा में अपने घरों से दूर रह रहे वीर जवानों के लिए राखियां भेज कर हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं। आज अगर हम सब देशवासी अपने को सुरक्षित महसूस कर पाते हैं तो वह सिर्फ और सिर्फ सैनिक भाइयों की बहादुरी की वजह से है। हम इन सैनिक भाइयों से अपनी रक्षा की उम्मीद करते हैंसाथ ही उनकी दीर्घायु की कामना भी करते हैं। यही बहादुर भाई हमारी  हमारी मातृभूमि की रक्षा करते हैं। वे दिनरात कठिनसेकठिन परिस्थितियों में रहकर देश की सुरक्षा करते हैं। अपने इन्ही वीर भाईयों के दम पर हम लोग अमनचैन से रहते हैं। सैनिकों के रूप बहनों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है।

            राखी का यह त्योहार देश सहित विश्व की रक्षाविश्व पर्यावरण की रक्षा तथा मानव जाति के हितों की रक्षा के लिए संकल्प लेने वाला पवित्र पर्व है। भारत सहित सारे विश्व में निवास करने वाले प्रवासी भारतीय बहिनें तथा बेटियाँ अपने प्रिय भाइयों को रक्षासूत्र भेजती हैं एवं उनकी लम्बी आयु और सफलता की कामना करती हैं। रक्षा की कामना लिये भाईचारे और विश्व एकता तथा विश्व शान्ति के धागे से बंधा हुआ है। जहाँ वसुधैव कुटुम्बकम् की सर्वोच्च भावना के साथ मानव जाति एक रक्षासूत्र में बंध जाती है।

            विश्व एकता की शिक्षा द्वारा हम विगत 60 वर्षों से ऐसे प्रयास कर रहे हैं कि अब सारे विश्व को युद्धों तथा आतंकवाद से मुक्त किया जाये। युद्ध तथा आतंकवाद में अब किसी माँ की गोद तथा किसी बहन की मांग सुनी  हो। हमारे जीवन का ध्येय वाक्य ‘जय जगत’ के पीछे छिपी भावना युद्ध रहित तथा आतंकवाद रहित दुनिया बनाना है। जहाँ किसी एक देश की नहीं वरन् सारे विश्व की जय हो।

            हम सभी को मिलकर स्वतंत्रता दिवस पर इन पंक्तियों ‘‘जो भरा नहीं है भावों से बहती जिसमें रसधार नहीं। वह हृदय नहीं वह पत्थर हैजिसमें स्वदेश का प्यार नहीं’’ को साकार रूप देना है। वैश्विक युग में स्वदेश प्रेम का विस्तार विश्व प्रेम के रूप में विकसित होना ही ‘मानवता’ है।

            21वीं सदी की विकसित मानवता की पुकार है कि जिस प्रकार देश संविधान तथा कानून से चलता है उसी प्रकार यदि भारत को पुनः विश्वगुरू बनाना है तो उसे सभी देशों की सहमति से विश्व की सरकारविश्व की चुनी हुई संसदविश्व का संविधान तथा प्रभा

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