Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दिग्दर्शिका : विषय -मुझे जीवन मैं क्या करना है ?

 

जीवन मैं आने के बाद इन्सान बचपन की अवस्था से कौमार्य अवस्था की तरफ बढता है तो उसकी उर्जा एवं मन विचलित होने लगते है |उसका दिमाग अनेकों प्रश्न करता है |वह समझ मैं न आने के कारण असंतुलित व्यव्हार एवं कार्यों की तरफ बढता है |
आइये इस विषय पर मंथन करें कि मुझे जीवन मैं क्या करना है ?
हर एक वर्ग के प्राणी अपने ही वर्ग मैं रहते हैं | विभिन्न प्रकार के पशु/पक्षी अपने प्रकार के वर्ग मैं साफ साफ दिखाई देते हैं | जैसे कि हाथी का अलग समाज होता है, हिरण का अलग वर्ग होता है, चिड़ियों का अलग, तोते का अलग इत्यादि |
इसी के अनुसार मनुष्य का एक अलग समाज है/वर्ग है ,अर्थात मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है |

विभिन्न पशु/पक्षी की आवश्यकता सीमित होती है अतः प्रकर्ति उन आवश्यकताओं की पूर्ति करती है | परन्तु मनुष्य एक प्रगति शील प्राणी है अतः उसे स्वयं की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विभिन्न प्रकार के कार्यों को प्रारंभ करना होता है | जैसे खेती करना, विभिन्न प्रकार की वस्तुओं का अविष्कार करना, कारखाने चलाना, बाजार स्थापित कर उसका प्रबंध करना इत्यादि|

क्योंकी मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः उसे एक दूसरे का सहयोग करते हुए ही जीवन बिताने की राह अपनाना चाहिए | अन्यथा असहयोग से वह स्वं अलग पड़ जाएगा और उसकी आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु कोई भी सामने नहीं आएगा|
अब हम फिर से मुख्य विषय पर ध्यान करें कि मुझे क्या करना चाहिए|

उपरोक्त वाक्य में "मुझे" शब्द स्वं के स्वभाव के बारे में अध्यन की ओर निर्देशित करता है | जैसे कि "मुझे फोटोग्राफी का काम पसंद है" ,"मुझे कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर का काम पसंद है" ,"मुझे घूमने का काम पसंद है" इत्यादि ,| हमें वही काम करना चाहिए जो हमारे स्वभाव की पसंद है| अन्यथा हमें जिन्दगी मैं प्रसन्नता कम और मुश्किलें ज्यादा मिलती हैं |
जब हम कर्म का चयन करके उसको करने की बात करते हैं, तो निम्न लिखित मुख्य बातों की तरफ ध्यान देना होगा :
(प) लक्ष्य
(फ) प्रयास
(ब) सहयोग
(भ) नियम
(म) पैसा

जब तक लक्ष्य और नियम निहित नहीं होते हैं तब तक प्रयास सहयोग और पैसा व्यर्थ जाता है |
उपरोक्त दिशाओं की ओर फ़क़ीर कबीर ने भी दिशा दी है :

लक्ष्य के बारे मैं कहा गया है :

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर

प्रयास के बारे में कहा गया है ;

करत करत अभ्यास ते जड़मति होए सुजान,चकली आवत जात के सल पर पड़त निसान

सहयोग के बारे मैं कहा गया है ;

निदक निअरे राखिये आंगन कुटी छबाए, बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुहाए

नियम के बारे में कहा गया है ;

काल करिन सो आज कर, आज करे सो अब पल में प्रलय होएगी बहुरि करेगो कब

पैसे के बारे में कहा गया है ;

माखी गुड में लिपटी रहे पंख रह्यो लिपटाये, हाथ मले सर धुनें लालच बुरी बलाए

विषय का सार है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ओर उसे हर वही बात करना चाहिए जिससे स्वयं की,परिवार की,समाज की प्रगति हो क्योंकि सब एक दूसरे पर निहित होते हैं|

 

 

प्रदीप मेहरोत्रा

 

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