Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मेरा जोगी मन

 

ओ मांझी चल दूर कहीं,
दूर कहीं इस दो मन से,
भरमाता सा डोल रहा हैं,
ये बैरी सा जीवन में |


.
डोर जतन कुछ काम ना आये,
कहा बंधा हैं किस हद में,
बन जोगी ना रमा कभी,
मंदिर मस्जिद ना मठ में |


.
पर जोगी जोग लगा बैठा,
जो दो नैनन के जोड़ से,
सौ उमर लगे सुलझाने में,
जुड़े सौ बंधन तोड़ के |


.
भेद खुलावे,नाच नचावे,
खेल दिखावे जीवन में,
भरमाता सा डोल रहा हैं,
ये बैरी सा जीवन में

 

 

प्रदीप सिंह चम्याल 'चातक

 

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