बस अब मेरा हिसाब कर दे , ऐ - मेरे खुदा ,
कि सफ़र मुश्किल सा लगता है,
साँसों का ये कारवां अब उलझन भरा लगता है,
शायद ही कोई इंसान ज़िन्दा बचा हो अब इस जहां में ,
बर्ना कतारों में खड़ा हर शख्स मुर्दा सा लगता है,
खज़ाना तो शैतान लेकर उड़ गया ,
फिर न जाने राजा क्यों हम पर शक रहा है,
जुवान तो पहले ही छीन ली थी हमारी, हमसे
अब न जाने क्यों हमारा गला दबा रहा है,
महफिलें तो अब भी महलों में ही चल रही हैं,
फिर न जाने झोंपड़ियों को क्यूँ खंगाला जा रहा है,
जो था वो तो सब छी न लिया हमसे,
अब न जाने क्यूँ कफ़न को बार - बार उछाला जा रहा है,
बस अब मेरा हिसाब कर दे , ऐ - मेरे खुदा ,
कि सफ़र मुश्किल सा लगता है………..
———————- लेखक : प्रदीप सिंह
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