Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

बस अब मेरा हिसाब कर दे , ऐ - मेरे खुदा

 

बस अब मेरा हिसाब कर दे , ऐ - मेरे खुदा ,

कि सफ़र मुश्किल सा लगता है,

साँसों का ये कारवां अब उलझन भरा लगता है,

शायद ही कोई इंसान ज़िन्दा बचा हो अब इस जहां में ,

बर्ना कतारों में खड़ा हर शख्स मुर्दा सा लगता है,

 

 


खज़ाना तो शैतान लेकर उड़ गया ,

फिर न जाने राजा क्यों हम पर शक रहा है,

जुवान तो पहले ही छीन ली थी हमारी, हमसे

अब न जाने क्यों हमारा गला दबा रहा है,

 

 


महफिलें तो अब भी महलों में ही चल रही हैं,

फिर न जाने झोंपड़ियों को क्यूँ खंगाला जा रहा है,

जो था वो तो सब छी न लिया हमसे,

अब न जाने क्यूँ कफ़न को बार - बार उछाला जा रहा है,

बस अब मेरा हिसाब कर दे , ऐ - मेरे खुदा ,

कि सफ़र मुश्किल सा लगता है………..

 

 

 

———————- लेखक : प्रदीप सिंह

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ