Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी

 

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी,

कुछ धुंधला सा तो कुछ अनजान सा लगता है अब तेरा शहर भी ,

कभी बरसता है तो कभी उबलता है

कुछ भीगा तो कुछ झुलसा हुआ लगता है अब तेरा शहर भी,

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी……….

 

 


चीखता है , चिल्लाता है, किसी की सुनता नहीं,

बस बोलता ही जाता है ,

चेहरे पर हसीं तो दिल में जहर रखता है,

सांप से भी जहरीला हो गया है अब तेरा शहर भी,

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी…………..

 

 


काफी गुस्से में लगता है, खंज्जर उठाये,

हर किसी के पीछे दौड़ता है,

काफ़िर सा बन गया है अब तेरा शहर भी,

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी……

 

 


ढेर काफ़ी लगे हैं तेरे शहर में ,

कुछ लाशों के, तो कुछ गंदगी के पड़े हैं,

काफी बीमार और लाचार सा हो गया है, अब तेरा शहर भी,

क्या खूब दिखता है अब तेरा शहर भी……

 

 

लेखक : प्रदीप सिंह

 

 

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