Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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आर्थिक सुधार का जाल

 

२ ०१३ में भारत में आर्थिक सुधार के नाम पर भूमंडलीकरण उदारीकरण व निजीकरण का प्रवेश बहुत तेजी से हुआ जिसका कुप्रभाव भारत में भलीभाति देखा जा सकता है इसकी गिरफ्त में न सिर्फ कांग्रेस और भाजपा है बल्कि अब यह सम्पूर्ण देश पर अपना वर्चस्व फेला रही है और देश की सरकार इसे खुले दिल से और हसते हसते स्वीकार कर रही है देश में न तो इसका कोई भय नहीं है यही आर्थिक सुधार एक दिन देश को निगल जायेगा
परन्तु देश में कुछ नागरिक ऐसे है जिन्हें देश के वर्तमान व भविष्य की चिंता है हाल ही में विदेश में कार्यरत नोबल पुरस्कार व भारत रत्न प्राप्त अमर्त्य सेन की पुस्तक ' एन अनसर्टेन ग्लोरी इंडिया एंड इट्स कांट्रीडीक्शन सुर्खियों में है इसमें वे भारत में आर्थिक सुधारो की विसंगतियो की और इशारा करते है उनका मानना है कि भारत में वितरण की समस्या गंभीर है आर्थिक सुधार का उपयोग गरीबी कुपोषण के प्रगति की लिए नहीं हो सका
अमर्त्य सेन के आंकड़े व तर्को को देखकर यह अहसास होता है कि देश में आर्थिक सुधार का फायदा जिसे होना चाहिए वो तो इससे कोसो दूर है आर्थिक सुधार के नाम पर केवल विदेशी कंपनियो को भारत में खुले निवेश करने की छुट दी जाती है
इसका लाभ भारतवासियों को नहीं केवल विदेशियों को ही होता है जिन विदेशियों को भारत से बाहर निकालने के लिए गांधीजी सुभाष चन्द्र बॉस और न जाने कितने ही देशभक्तो ने अपनी जान हँसते हँसते दी थी उस देश में आज खुद देश की सरकार ही आर्थिक सुधार के नाम पर देश को धोखा देकर केवल अपनी जेबे गरम कर रही है
इस सुधार से देश की जनता को नहीं सिर्फ और सिर्फ राजतन्त्र में बैठे नेताओ को फायदा है जो इनके निमंत्रण को खुले दिल से स्वीकार करते है गरीब और गरीब होते जा रहे है लेकिन देश में राहुल गाँधी और उनके जैसे नेता हर रोज गरीबी की एक नयी परिभाषा गढ देता है जिन्हें गरीबी के पहले अक्षर का अर्थ तक नहीं मालूम भला वे क्या इसकी परिभाषा दे सकते है खेर जनता को अधिक दिन तक बेवकूफ नहीं बना सकते आर्थिक सुधार के नाम पर भ्रस्टाचार और घोटाले करवा कर देश को हर रोज करोडो का घाटा कर रहे देश के भ्रष्ट नेता अपना ईमान तक बेच चुके है दिन पर दिन बदती मंहगाई और ऊपर से आर्थिक सुधार का बुरखा डाल कर गरीब जनता को सरेआम बेइज्जत किया जा रहा है
झुग्गी झोपड़ियो में गुजर बसर करने वाले उन भोले भाले लोगो को देश के आर्थिक सुधार से क्या लेना देना उन्हें तो २ वक्त की रोटी चाहिए लेकिन लगता है अब वो भी उनसे जल्दी ही छिन जायेगा क्युकी दिन प्रतिदिन विदेशी कंपनियों के आगमन से और एफ डी आई आदि के आने से बहुत जल्द वो मिलना भी नामुमकिन सा लगेगा
देश की सरकार फिर भी आर्थिक सुधार का जाल बुनती रहेगी और देश की खून पसीने की कमाई को यो ही विदेशी लोगो को बिना किसी संकोच के देती रहेगी चाहे देश की स्थिति सुधरे या बिगड़े
उदारीकरण निजीकरण वैश्वीकरण के नाम पर देश को ये कुर्सी के भूखे दरिन्दे लुटते रहेंगे फिर भी इन राक्षसों की भूख शांत नहीं होगी देश को यो ही बेचते रहेंगे गरीब और गरीब होते चले जायेंगे लेकिन फिर भी हमेशा से भारत देश की संसद में ऐसी चीजो को ही समर्थन मिलता रहा है और मिलता रहेगा जिससे की नेताओ का उल्लू सीधा होता हो उन्ही के लिए संसद में जल्द फैसले लिए जाते है देश की जनता को अब जागना होगा और इसका पुरजोर विरोध करना होगा और देश की सरकार को बताना होगा कि ये प्रजातंत्र है और प्रजा है तो ही राजतन्र का अस्तित्व है अन्यथा इसका कोई मूल्य नहीं है प्रजा ही सर्वोपरी है जिसका महल खड़ा किया गया है उसकी नीव को उससे अलग नहीं समझा जा सकता ये बात जितनी जल्दी समज ली जाये उसी में शांति बनी है अन्यथा क्रांति तो होकर रहेगी

 

 

 

Pragya sankhala

 

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