Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आतंक का हो अंत

 

कौन है जो आएगा
इस मिटटी को करने अगवा

 

मिटा देंगे उसका निशान
जिसने इस रज को छुआ

 

याकूब हो या वो कसाब
हम चुकाएंगे हिसाब

 

भारत भूमि है हमारी
अब है हमारी बारी

 


इस मिट्टी के हम है सपूत
कर न पाये भूल

 

हाथ अगर ऊठे किसी का
सर कलम होगा उसी का

 

समझ न इस भूमि को अबला
इसकी रेत में है एक सबला

 

रहना हमेशा इससे दूर
वरना अच्छा न होगा सुरूर

 

काट शीश हम इसको चढ़ाये
अभिषेक फिर इस मिटटी का कराये

 

मिटटी का है कर्ज चुकाना
अब तो अपना धर्म निभाना

 


माँ भारती को है विश्वास
अब है सिर्फ हमसे आस

 

आओ हम हो हो जाये एक
कोई न हो रंग भेद

 

तिलक अपने वीरो का हम
अपने सर लगाएंगे

 

इसकी शान के लिए
चाहे हम मर जायेंगे

 

 

Pragya sankhala

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ