कौन है जो आएगा
इस मिटटी को करने अगवा
मिटा देंगे उसका निशान
जिसने इस रज को छुआ
याकूब हो या वो कसाब
हम चुकाएंगे हिसाब
भारत भूमि है हमारी
अब है हमारी बारी
इस मिट्टी के हम है सपूत
कर न पाये भूल
हाथ अगर ऊठे किसी का
सर कलम होगा उसी का
समझ न इस भूमि को अबला
इसकी रेत में है एक सबला
रहना हमेशा इससे दूर
वरना अच्छा न होगा सुरूर
काट शीश हम इसको चढ़ाये
अभिषेक फिर इस मिटटी का कराये
मिटटी का है कर्ज चुकाना
अब तो अपना धर्म निभाना
माँ भारती को है विश्वास
अब है सिर्फ हमसे आस
आओ हम हो हो जाये एक
कोई न हो रंग भेद
तिलक अपने वीरो का हम
अपने सर लगाएंगे
इसकी शान के लिए
चाहे हम मर जायेंगे
Pragya sankhala
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