यह कहानी आज के हर उस बेजुबान पशुओ की है जिनकी चीख पुकार को अनसुना करके देश में रोज नए कत्लखाने खोले जा रहे है और उन्हें असहनीय पीड़ा देकर उनके खून की स्याही से KFC, McDonald जैसे बड़े बड़े रेस्त्रां खोले जाते है l जबकि परदे के पीछे की भयानक तस्वीर तो एक संवेदनशील व्यक्ति ही समझ सकता है क्योकि उनके दर्द को समझने के लिए उनकी भाषा की नहीं उन पशुओ की आँखों में उस दर्द को महसूस किया जा सकता है l उनके पंखो को प्रकृति की छुअन महसूस करने से पहले ही गर्म पानी से जला दिया जाता है और चुग्गा चुगने से पहले ही उनकी चोंच ही उखाड़ दी जाती है l और उनसे उनकी आजादी तो क्या उनसे उनकी जिंदगी ही छीन ली जाती है उन्हें इस तरह तड़पाया जाता है की शायद वो तो फिर भगवान से मर जाने की ही दुआ मांगते है इसके लिए शायद कोई उन्हें माफ़ करे या न करे पर उन बेजुबान पशुओ की चीखे उन्हें कभी माफ़ नहीं कर सकती l यह सिलसिला अभी भी जारी है इसका अंदाजा इन् आंकड़ों से लगाया जा सकता है-
१६फरवरी २०१४ में यह खबर आई है जिसके अनुसार भारत ने पिछले २ वर्षो में ३६३६० करोड़ रूपये के भैस के मांस का निर्यात किया हालांकि एक संसदीय समिति ने दुधारू भैसों के मांस के निर्यात के लिए काटे जाने की अनुमति दिए जाने पर सरकारी एजेंसियों को आड़े हाथो लेकर अपनी स्वार्थपरता का ही परिचय दिया और यह सिफारिश की कि नियमो में संशोधन कर यह साफ करना चाहिये कि मांस के लिए केवल सांडो को (जो दुधारू नहीं है )ही बूचड़खाने में भेजा जा सकता है लेकिन यहाँ सवाल यह उठता है कि क्या किसी भी जानवर का क़त्ल करना मानवीयता कहलाएग़ा क्योकि ईश्वर की बनायीं इस धरती के कण - कण में जीवन का अहसास है और हर प्राणी को जीने का अधिकार है l फिर किसी भी जीव को कत्लखानो में क्यों भेजा जाये l
संवेदनाओ का बांध तो यही तक नहीं टूटता और भी कई चीजे सरकार ने जोड़ दी है दिल्ली मतस्य व अंडा समिति से प्राप्त जानकारी के अनुसार मुर्गा मंडी गाजीपुर दिल्ली के बूचड़खाने में प्रतिदिन औसतन ५७ हजार मुर्गे मुर्गिया काटी जा रही है l
भारत से मांस पाकिस्तान अरब देश चीन अमेरिका आदि देशो में भेजा जाता है l
भारत सरकार के २००९ के आंकड़ों के अनुसार भारत में मांस उत्पादन में गाय का मांस १४ लाख टन सूअर का मांस करीब ६ लाख ३० हजार टन और बाकि छोटे जानवर शामिल है l इतने मांस के लिए भारत में १० करोड़ ५० लाख जानवरो का क़त्ल किया गया l इनमे गाय भैस, बैल, बकरा, बकरी, मुर्ग़ा, मुर्गी आदि है l
भारत में ३६०० सरकार के रजिस्टर्ड और ३६०० अनरजिस्टर्ड कत्लखाने है l
सरकारी तंत्र में पशुओ की बड़े पैमाने पर हत्या कर उसके मांस को विश्वभर में बेचने की योजना बन रही है योजना के अंतर्गत पशुवध आंकड़ों को तेजी से बढाना कार्यरत कत्लखानो का आधुनिकीकरण करना ज्यादा से ज्यादा यांत्रिक कत्लखाने बनाना मांस निर्यात में आने वाले अवरोध हटाना l जिससे भारत एक अग्रणी मांस निर्यातक देश बन सके यही नहीं सरकार की १२ वि पंचवर्षीय योजना २०१२-१७ के लिए भारत सरकार पशुपालन व् डेयरी विभाग की सलाहकार समिति ने योजना आयोग को एक रिपोर्ट सोपी है जिसमे कहा गया है वर्त्तमान में गो मांस के निर्यात प्रतिबन्ध है अतः आयत निर्यात में आवयशक संसोधन कर गो मांस के निर्यात की स्वीकृति दी जाये और भला ऐसी मांग की भी क्यों न जाये क्यों की भारत में गाय का मांस १२० रूपये किलो खुले आम बेचा जाता है l एक गाय व भैस के कटने पर लगभग ३५० किलो मांस निकलता है जबकि चमड़े व हड्डियों की कीमत अलग मिलती हैl विदेशो में निर्यात करने पर यही मांस उससे ४ गुना दामो में बिकता है तो फिर ये दौलत के भूखे जानवरो को रखकर परिश्रम क्यों करेंगे लेकिन अगर इन्ही को पालकर इनसे प्राप्त होने वाली चीजो को बेचा जाये तो उनकी जिंदगी चैन से कट सकती है और भारत देश फिर से अहिसंक देश की श्रेणी में आ सकता है l
अहिंसा को परम धर्म समझने वाले इस देश की सरकार ही जब पशु भक्षी हो तो और किसकी और देखा जाये यह सोचना मुश्किल है l देश ने मोदी सरकार से उम्मीद लगायी थी की इन् चीजो पर दी जाने वाली सब्सिडी को वे हटा देंगे लेकिन यहाँ भी निराशा ही हमारे हाथ लगी उन्होंने भी इतने सालो से हो रहे इस कुकर्म में अपनी हिस्से दारी को बनाये रखा और सब्सिडी को ज्यों का त्यों रखा l इससे अधिक शर्म की बात इस देश के लिए और क्या हो सकती है l
देश में छोटी से लेकर बड़ी बड़ी गिरामी कंपनिया तक इन अंगो को किसी न किसी रूप में अपने प्रोडक्ट में शामिल करती है फिर चाहे वो लिपस्टिक से लेकर क्रिकेट की बॉल ही क्यों न हो l
पश्चिम की शान के चलते देश नीचता के स्तर से भी नीचे गिर चुका है बल्कि देश के महान लोग गांधी, महावीर जैसे लोगो की छवि अपमानित कर रहा है l जिस भारत देश को कई नामो से जाना जाता है आज उसी के ध्वज को किसी के खून से रंग दिया है अब भारत को सर्वाधिक मांस उत्पादन वाला देश समझा जाता है यह बात इसी से साफ़ हो जाती है लेकिन हर बुराई का अंत एक न एक दिन अवश्य आता है l हर किसी को अपने पापो की सजा भी इसी जन्म में मिलती है l यह भी साफ हो चुका है तभी तो ५ सितम्बर २०११ को एक खबर अनुसार चीन के कई प्रमुख मांस उत्पादकों पर मानव के हानिकारक पदार्थो के उपयोग का कांड भड़का था l जैसा की जाहिर है कई उत्पाद मुनाफे के फेर में पड़ कर सुअरो, मुर्गियों को ऐसे रासायनिक पदार्थ खिलाते है जिनसे वे जल्दी मोटे जाते है और उन जानवरो और पक्षियों की रोग-प्रतिरोधक क्षमता नष्ट हो जाती है और फिर उनके मांस से बनायीं गयी चीजो को खाने के कारण लोगो के दिल धड़कन तेज होने, रक्तचाप में उतार चढ़ाव, सर दर्द आदि बढ़ने लगे कुछ समय बाद कोशिकाओ के स्तर पर उनके शरीर में परिवर्तन होने लगे जिससे उसकी रोगो से लड़ने की क्षमता प्रभावित हुई एव कैंसर की संभावना बढ़ गई l इसी का जीता जागता उदाहरण बर्ड फ्लू कुछ समय पहले ही आया था l
उन बेजुबान जानवरो की चीखो और उनकी भटकती आत्माओ को शायद यह देख कर ही चैन मिल जाये की जिन राक्षशो ने उनको तड़पा तड़पा कर मारना चाहा अब वो भी तड़प तड़प कर मर रहे है l उनके मुनाफे के तरीको ने आज उन्ही को मौत के घाट के समीप खड़ा कर दिया है शायद अब उन्हें उस पल पल की तड़प का अहसास होगा जो उन बेजुबान जानवरो के सीने में उठ रही थी l जिनके हाथ में अब भी उन जानवरो का खून लगा है वो अब चैन की साँस कैसे ले सकते है l उन राक्षसो को ऐसी ही सजा मिलनी चाहिए या फिर यह भी उनकी दी गई प्रताड़नाओं से कम लगती है l
यह कहानी अब सिर्फ चीन की ही नहीं बल्कि धीरे धीरे पुरे देश में फैलने वाली है l इससे यह आभास हमें हो जाना चाहिए की प्रकृति अपना संतुलन बना कर रहेगी l कहते है हर चीज की अति बुरी होती है और अब वह समय आ गया है जब पूरे देश के लोग कत्लखानो को बंद करने के लिए सड़को पर आ जायें और उन राक्षशो को जेल की सलाखों के पीछे बंद कर दिया जाये जो इस तरह के काम करेगा l कत्लखानो पर ताले लगा दिए जायें l इसके लिए आंदोलन चलाया जाये और ये आंदोलन धर्म से ऊपर उठकर हो, इसे प्रकृति के बिगड़ते हुए संतुलन के रूप में देखा जाये और हर प्रकृति प्रेमी इसमें भागीदार बने l शायद उस दिन उन जानवरो की आत्मा को शांति मिलेगी l
Pragya sankhala
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