याकूब मेमन एक ऐसा नाम जो शायद आज के इस वक़्त में हर कोई जानता है 1993 के मुबई बम धमाको के आरोपी याकूब को 22 साल बाद नागपुर सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गयी इन धमाको में 297 लोगो की जान गयी जबकि 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे जिसे कोई भुला नहीं पाया है दिल दहला देने वाले उस हादसे को अंजाम देने वाले आरोपी को बचाने की भी पुरजोर कोशिश उन लोगों ने की जो खुद भी कभी इसमें कही न कही शामिल थे 30 जुलाई 2015 को याकूब मेमन की फांसी तय की गयी थी उसके बावजूद भी याकूब के कुछ वकीलों ने आधी रात तक फांसी को रोकने की कोशिश की लेकिन तय समय और तय तारीख के दिन उसे फांसी दी गयी जिसे रोकने के लिए बड़े बड़े अभिनेता और कुछ नेता जिसमें अबु आजमी जिसने कहा की वो बेकसकुर है और उसने सरेंडर किया है और असुद्दीन ओवैसी ने कहा की मुस्लिम होने की वजह से उसे फांसी दी जा रही है इन सब ने ही पहले इस बात को हवा दी की धर्म के नाम देश को गंदा किया जा रहा है एक आतंकवादी को बचाने के लिए सब ऐसे एक जुट होकर खड़े हो गए अगर यही लोग देश में ऐसे हादसों को अंजाम देने वाले लोगो को पकड़ने के लिए खड़े हो जाये तो कोई भारत की सीमा में घुसने से पहले भी दस बार सोचे लेकिन अपने वोट बैंक छापने के चक्कर में ये लोग एक ऐसे आतकंवादी जिसने कितनी ही माओ की गोद हमेशा के लिए सुनी कर दी उन लोगो की पैरवी कर रहे थे
और तो और एक नेता ने तो याकूब की पत्नी को सांसद बनाने की बात भी कह डाली ऐसे आतंकवादी जिसे देश ने फांसी चढ़ाने का फैसला किया हो उसी की पत्नी को देश की सरकार का एक हिस्सा बनने के लिए कहा जाये इससे ज्यादा शर्म की बाथ और क्या हो सकती है बार बार यह कहा जा रहा था की उसने देश की मदद की और उसने खुद अपने आप सरेंडर किया जबकि उसे गिरफ्तार किया गया था देश में उन लोगो के बार बार ये कहने से की उसे मुस्लिम होने की वजह से फ़ासी दी जा रही है और उसे पूरा वक़्त नहीं दिया जा रहा है फांसी दिए जाने में जल्दबाजी की जा रही है कई लोगो के मन में सवाल उठ रहे होंगे की क्या वाकई ऐसा है तो हम कुछ आकड़ो से आपको रूबरू करवाते है
इन आकड़ो के तहत भारत में आजादी के बाद 755 लोगों को फांसी दी गयी जिसमे से सिर्फ 34 मुस्लिम थे मतलब सिर्फ 4%5 लोग मुस्लिम थे
इन आकड़ो के तहत याकूब 756 वा ऐसा अपराधी था जिसे फांसी दी जा रही थी इसका साफ़ साफ़ मतलब है कि याकूब पिछले 11 सालो में फांसी की सजा भुगतने वाला चौथा इंसान था और जिससे ये भी पता चलता है कि सरकार ने उससे अपनी दलील रखने का पूरा पूरा समय दिया था अपने आप को बचने का उसके पास पूरा समय था और उसे फांसी देने का फैसला किसी भी जल्दबाजी में नहीं लिया गया
3 साल 2004 से 2013 के दौरान 1 हजार 303 लोगो को फांसी की सजा सुनाई गयी यानी हर साल 130 दोषियों को फांसी की सजा सुनाई गयी लेकिन इन 10 वर्षो में केवल 3 को फांसी दी गयी यानी 40 महीनो में सिर्फ एक फांसी तय की गयी और बाकि को उम्र कैद में बदला गया
जिन 3 को फांसी हुई उनमे वर्ष 2004 में धनंजय चटर्जी जिसने कोलकता में स्कूल की एक छात्रा के साथ बलात्कार कर हत्या कर दी थी
२ साल 2012 में मुंबई हमले को अंजाम देने वाले आतंकियों में से एक अजमल कसाब को दी गयी
तीसरा संसद हमले के मास्टर माइंड अफजल गुरु का नाम शामिल था
और जहा तक दया याचिकाओं को ख़ारिज करने की बात करे तो कई ऐसे मोके भी आये जब राष्ट्पति ने फांसी की सजा को बदलकर उम्र कैद किया गया जिनमे देश की पहली महिला राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल का नाम सबसे पहले है जिन्होंने फांसी की सजा पाने वाले आरोपियों को जीवनदान दिया साल 2007 से 2012 तक देश की राष्ट्रपति रहने के दौरान प्रतिभा पाटिल ने 92% दया याचिकाओं पर माफ़ी दी उन्होंने 34 लोगो की फसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया और 5 दया याचिकाये उन्होंने ख़ारिज की जिनमे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव ग़ांधी के हत्यारों की दया याचिकाये भी शामिल थी
अगर बात धर्म की ही हो रही है तो यहाँ हम भारत के मिसाइल मैं कहे जाने वाले डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम की क्यों न करे जिसने भारत माँ की मिटटी को अपने अपने बनाये मोतियों से सजाया देश को एक नए सिरे से सोचने की ताकत दी और हर समय देश की प्रगति के विषय में ही सोचते रहते अपने अंतिम समय में भी उन्हें देश की संसद को बिना रुकावट कैसे चले बस इसी बारे में सोच रहे थे डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम के आकस्मिक निधन से किसी जाती धर्म नहीं बल्कि बच्चे बच्चे को आघात लगा शिलांग में एक लेक्चर देते हुए अचानक हार्ट अटैक आ जाने की वजह से उनका निधन हो गया यु तो वे सभी धर्मो को मानते थे लेकिन वो भी उसी धर्म के थे जिसके लिए याकूब को बचाने का हथियार बनाया लेकिन अगर वे आज होते तो किसी मजहब को नहीं अपने भारत देश को प्राथमिकता देते उनके सम्मान में आज देश ही नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व खड़ा है अगर मजहब को देख कर ही फैसले किये जाते तो आज उन्हें कोई इतना पसंद न करता लेकिन नेक इंसान की आत्मा उसके बाहरी आवरण से कही अधिक शक्तिशाली होती है उनके मजहब कभी उनकी छवि नहीं बनाते जहा आज बच्चो के प्यारे कलाम के जाने पर हर एक की आँख भीगी होगी तो वही याकूब को फांसी दिए जाने पर उन माँओ को आज सुकून मिला होगा जिनके बच्चे उसकी वजह से उनके साथ नहीं है आज जहा कलाम को सलाम के नारे दिए जा रहे है तो वही दूसरी और उन घरो में आज हल्की सी ख़ुशी होगी जिन्होंने याकूब के मौत की खबर सुनी होगी मजहब की वजह से क्या अंतर है शायद कोई नहीं बता सकता क्युकी मजहब एक था लेकिन कर्म अलग एक जिन्होंने देश का साथ जीवन भर थामे रखा और दूसरा जिसने अंत तक अपने को बेकसूर बताता रहा
अब फैसला आपको करना है की धर्म इनके बीच कहा है
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