Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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मरने से डर क्यों लगता है

 

जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है l मृत्यु जिसने जन्म लिया है l उसकी मृत्यु होनी निश्चित है। लेकिन फिर भी दुनिया में शायद ही कोई हो जिसे मरने से डर नहीं लगता जबकि हर कोई इसका अभ्यास रोज करता है ,हर कोई इसका अभ्यास रोज करता है ,हर व्यक्ति रोज रात को सोता है ,लेकिन असल में वो अगले दिन फिर जागने के लिए सोता है। इसलिए उसे डर नहीं लगता लेकिन किसी की मौत हो जाने पर वो कभी न जागने के लिए सोता है l इसलिए उसे डर लगता है l
मरने का रास्ता हमारे हर रात बेखौफ सोने जैसा हो जैसा हो जाये या हमें अपना शरीर छोड़ने में किसी प्रकार का दर्द न हो l हमें यह पता हो की बाद हमारा क्या होगा ,तो शायद मृत्यु का डर भी हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा l
हर रोज अनेक व्यक्तियों की मौत होती है कोई एक्सीडेंट बीमारी सदमा लगना , खुदखुशी करना l बहुत सी चीजे किसी की मृत्यु के पीछे होती है l
लेकिन बहुत ही कम मोते ऐसी होती है l जिसमें कोई व्यक्ति बिना किसी दर्द के मर गया हो ,बिना पीड़ा के मृत्यु बहुत कम देखने को मिलती है , और अगर बिना पीड़ा के मृत्यु हो भी जाती है ,तो भी व्यक्ति को अपने अस्तित्व की चिंता हमेशा सताती है l जो कुछ भी वो इस जीवन में पूरा करना चाहते है, और भय तो इस बात का लगता है कि मरने के बाद वो फिर अकेला पड़ जायेगा l उसके साथ कोई नहीं होगा l अगर आत्मा में सच्चाई भी है , तो फिर उसे वो स्वीकार कैसे करेगा ?
यू तो कुछ जगह लोगो के मरने के बाद फिर से जीवित होकर मौत के अनुभव को बताया है पुनर्जन्म होने की बाते भी कही गई है और वो बाते भी बताई जो सिर्फ उसको पता थी जिसकी मौत हुई थी , लेकिन फिर भी हर किसी को इस पर विश्वास करने के लिए किसी ठोस प्रमाण की आवयश्कता होती है l यहाँ तक विज्ञान अब तक नहीं पहुंच पाया है l हालांकि वैज्ञानिको स्तर पर प्रयोग सच्चाई जानने की पूरी कोशिश भी की , परन्तु ब्रह्मांड और अनंतकाल तक कौन पहुंच पाया है ? लेकिन हो सकता है कभी इस तक कोई पहुंच सके। लेकिन तब तक लोगो को केवल ईश्वर पर विश्वास करके ही इस सत्य को स्वीकार करना होगा। ताकि जब वो समय आये उससे पहले ही हम उसके लिए मानसिक रूप से पहले ही तैयार हो जाये। और अच्छे कर्म करे ,ताकि डर की जगह एक सुकून हो की हम इस दुनिया में कुछ तो अच्छा करके जा रहे है , इसलिए डरने के बजाय अपने मन को ऐसे अच्छे कामो में लगा दो जिससे हमें आत्मशांति मिले l

 

 

 

Pragya sankhala

 

 

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