आख़िरकार वो काला दिन आ गया जिसके न आने की हजारो लोग दुआए कर रहे थे शायद उसके जीने की चाह ही थी जो उसे जिन्दगी की जंग लड़ने की हिम्मत देती रही पर उसकी सांसे थमने से कोई नहीं रोक पाया लेकिन आज उसका ये दर्द सिर्फ उसका नहीं करोडो लोगो का बन चुका है शायद इसीलिए आज हर किसी की आँखे नाम है परन्तु हम उसकी मौत को ऐसे ही नहीं जाने देंगे यह दुख यह आक्रोश केवल जनता में नहीं सरकार में भी होना चाहिए
किन्तु ये शर्म की बात है गैंगरेप शिकार लड़की की मौत के बाद भी सरकार खोखले दावे करती रही
है इतना कुछ हो जाने के बाद भी क्यो सरकार संसद की तुरंत बैठक बुलाकर दोषियों पर करवाही नहीं करती उनको फासी की सजा देने की बजाय देश के प्रधानमंत्री अपनी सुरक्षा चोकस करने में लगे है मुख्यमंत्री अपनी सुरक्षा के लिए देश की पुलिसे मुस्तेद कर रही है ऐसे डरपोक सरकार से क्या सुरक्षा की उम्मीद की जा सकती है जिसे देश की जनता से ही डर है वो जनता जिसके दम पर ये शासन कर रही है देश में इससे शर्मनाक बात और कुछ नहीं हो सकती
परन्तु इस दुख के एक पहलु से नजर हटाकर इसके दुसरे पहलु को देखे तो देश के उज्जवल भविष्य के सुभ संकेत देखने को मिलते है क्योकि देश के इतिहास में पहली बार ऐसा जन आन्दोलन देखा गया है जिसको संचालित करने वाला सर्वेसर्वा या नेता नहीं है खुद जनता ही अपने दम पर इस आन्दोलन को चला रही है और समय समय पर आगे भी चलती रहेगी वह अब किसी नेता के लिए आन्दोलन नहीं करेगी बल्कि अपने अधिकारों के लिए स्वयं संघर्ष करेगी और सत्ता को उखाड़ फेकेगी
वैसे भी इस आन्दोलन के बाद देश के सभी नेता सकते में है उन्हें इस बात का अंदेशा भी नहीं था की भोली भली जनता का ये रूप भी हो सकता है जिन्हें वे जब चाहे रोंद सकते थे वो ही जनता अब फन फैलाये खड़ी है अब देश की जनता से सरकार को संभल कर रहने की जरुरत है
जिस प्रकार भारत देश को अंग्रेजो से आजाद करने के लिए कई क्रांतिकारियो ने बलि दी है उसी प्रकार भारत को के लिए दामिनी ने बलि दी है परन्तु अब इस बलिदान से कोई पीछे नहीं हटेगा वो चाहे देश का कोई अन्य व्यक्ति हो या स्वयं में हु
अब बच्चा बच्चा संघर्ष के कांटो पर चलने को तैयार है जिसमे न किसी को दर्द का एहसास होगा न भय का
बस एक जूनून होगा
Pragya sankhala
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