भारत देश में नागरिको को राष्ट्र की गरिमा बढ़ाने के लिए जो सम्मान दिया जाता है l उसे भारत रत्न नाम से नवाजा जाता है यह सम्मान देश में उस व्यक्ति को एक उचित स्थान दिलाने और उसकी प्रतिभा को एक सर्वोच्च नाम देकर सम्मानित करने के लिए दिया जाता है l अभी हाल ही में बीजेपी सरकार द्वारा भारत रत्न देने की बात कही गई है , जिनमे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का नाम बढ़ चढ़कर लिया जा रहा है l नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को भारत रत्न देने की चर्चा में गहमा गहमी हो चली है l
भारत को गुलामी की जंजीरो से आजाद करवाने में अपना अभूतपूर्व सहयोग देने वाले सुभाष चन्द्र बोस जैसे राष्ट्रप्रेमी को बेशक इस सम्मान से नवाजा जाना चाहिए , किन्तु उनकी तुलना देश के कला साहित्य विज्ञान से जुड़े लोगो की अपने क्षेत्र में सफलता के लिए दिए जाने वाले सम्मान से नहीं की जा सकती l
सुभाष चन्द्र बोस देश के हर युवा पीढ़ी का सपना है , वे देश की एक ज्योति के रूप में उभरे है, देश की जनता की आत्मा है और हमारी रूह का एक हिस्सा है l केवल यही नहीं वे तो एक राष्ट्र भावना है क्या किसी की भावना को कोई पुरस्कार से सम्मानित कर सकता है ? नहीं l
सुभाष चन्द्र बोस के देश के जज्बे को आज भी लोग सलाम करते है , "तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा " यह नारा देश के बच्चे बच्चे की जुबा चढ़ चुका है l जिनके खून में देश को आजाद करने की ऐसी ललक हो l जिनके एक इशारे पर आजाद हिन्द जैसी फौज खड़ी हो जाये, खुद अकेले ही क्रांति की अलख जगाने वाले उस राष्ट्र प्रेमी के लिए भारत रत्न तो बहुत छोटी चीज है l वे तो इन् सबसे कोसो ऊपर है , उनके द्वारा दी गई आजादी की अमूल्य भेंट के आगे भारत देश का कोई भी बड़े से बड़ा नागरिक उन्हें कुछ देने में सक्षम नहीं है , क्योकि इस भेंट के आगे और कुछ भी देने की सोचना भी नगण्य सा लगता है l आजादी के स्वरुप की उस साक्षात मूर्ति को हम किसी पुरस्कार से सुसज्जित नहीं कर सकते l सुभाष चन्द्र बोस देश की विजयगाथा की पहेली के साक्षात प्रमाण है यदि सच में उन्हें हम कोई सम्मान देना चाहते है , तो उनके पदचिन्हो पर चलकर उनके स्वपन को पूरा करना ही उनके लिए एक सच्चा सम्मान होगा l वैसे भी अब तक अगर एक नजर में देखा जाये तो भारत रत्न दिए जाने वाले लोगो में उन् लोगो का नाम है जो कला, संगीत ,राजनीती (गांधी परिवार) ,विज्ञान से जुड़े है इसमें भारत के रक्षक सुभाष चन्द्र बोस को कैसे रखा जा सकता है l
उनके इस दुर्लभ कार्य को तो एक सोने के पिंजरे में बैठा पक्षी ही बता सकता है , जिसे सोने के पिंजरे में उसकी प्रिय खाद्य वस्तुए उसे खाने को दी जाती है , लेकिन वो उसे अपनी चोच तक नहीं लगता बस खुले आकाश में दूसरे पंछियो को उड़ते हुए देखा करता है , पर जब एक दिन उस पिंजरे से बाहर निकल जाता है l तो उसे अपनी जिंदगी की वो ख़ुशी मिलती है , जो उसे उस सोने के पिंजरे में भी नहीं मिली थी और उन पंछियो के साथ वो उड़ता चला जाता है l कुछ ऐसी ही आजादी की तड़प को हम उनमे देख सकते थे l
कुछ ऐसा ही हम सुभाष चन्द्र बोस जी के आजादी के साथ जुड़े अनुभव को बता सकते है इसलिए उनके लिए यह सम्मान बहुत कमतर है l
Pragya sankhala
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