वह ज़िन्दगी जो
जीना नहीँ चाहता
जिसका हरेक क्षण चुभता है मुझे
जिसकी कोई भी अदाएँ
मुझे नहीँ भाती
फिर भी क्योँ है आती
वही ज़िन्दगी सन्निकट मेरे
मुझसे करने को प्रीति
सुना था प्रीति होती है
आपस मेँ दोनो तरफ से
तो फिर यह कैसा
एकतरफा प्यार
जिससे नफ़रत है मुझे
शायद
यह जीवन की कटु सच्चाई है कि
अनचाही ज़िन्दगी ही
जीनी पड़ती है सबको यहाँ
क्योँकि
चाह की तो कोई सीमा नहीँ होती...।
प्रकाश यादव "निर्भीक"
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