Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खफ़ा

 

 

खफ़ा नहीं हूँ मैं तुम्हारी बेवफाई पर,
खता तो मेरी है कि तुम पे एतबार किया;
ऐसी हादसा मेरे साथ पहली दफा तो नहीं,
जब चाहा जिसने मुझ पर वार किया।

 

 

दुआ ही तो मांगा हमेशा उनके लिए,
जो अक्सर मेरे साथ दगा ही किया,
सजा दिया चमन हमने गुलों से उनका,
जिसने काँटों का गुलिस्ताँ तोहफा में दिया।

 

 

गिरकर उठकर सँभलकर चला मैं,
गिराने वाले हमें खुद ही लडखडा गए,
रात के अन्धरे मेँ रोशनी दिखाया हमने,
जिसने हमारी जलती चिराग बुझा गए।

 

 

पग पग पर पत्थर बिछाने वाले,
पथ पर बढने को हमें हौंसला दे गए;
जिसने खाँई खोदी डगर पर मेरी,
वो उसी में लुढककर सिमट गए।

 

 

खुद तो वफ़ा न निभा पाये कभी,
बेवफाई का इल्जाम मुझ पे लगा गए;
उल्फतों में डाला हमें इस कदर उसने,
जालिमों से लड़ने को हमें "निर्भीक" बना गए।

 

 

 

प्रकाश यादव "निर्भीक"

 

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