माँ
मैं एक बेटी हूँ
पैदा होते ही घर में
घर की लक्ष्मी कहलाती हूँ
मोम की गुडिया सी दिखती हूँ
नन्हे पांव में बंधे
पायल के रुनझुन स्वर से
घर में मधुर धुन सुनाती हूँ
भाइयो के कलाइयों में
कच्चे धागे बांधकर
उन्हें रक्षा कवच पहनाती हूँ
यह सोचकर कि कहीं
खरोच तक ना आये मेरे भाईयों को
और फिर बड़ी होकर
इस बेदर्द दुनियां के
घिनोने नज़रों के सामने
एक अबला लड़की बन जाती हूँ
ऐसा कोई कवच नहीं जो मुझे
बचा सके दरिंदों से
इस लक्ष्मी, सरस्वती या शक्ति
कहलाने वाली
मोम की गुडिया सी बेटी को
क्योंकि- माँ
मैं एक बेटी हूँ
प्रकाश यादव "निर्भीक"
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