Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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सफ़र के डगर पर

 

न जाने किधर से,
मुलाकात हुई फिर आज उनसे,
जिनसे हुई थी मुलाकात कभी,
चलती बस के सफ़र मेँ,

 


देखा था जिनको तब,
आशा भरी नजरोँ से,
पुन: मिलने की उम्मीद लिए,
दफना दिया था उन लम्होँ को,
दिल के उस कब्रिस्तान मेँ,
जिसमें न जाने ऐसे कितने ही,
बीते सुनहरे पल,
दफ़न हो चुके हैँ खुद-ब-खुद,

 


सफ़र के यात्री अक्सर,
मिलते नहीँ दोबारा सफ़र मेँ,
बीते वक्त की तरह,

 


लेकिन बीता वह वक्त आज,
फिर वर्तमान सा लगता है,
वही आशाभरी नजरेँ,
वही थरथराते होँठ,
जो शायद कुछ कह लेने को आतुर है,
लेकिन रुकी अचानक बस,
फिर वहीँ उसी मोड़ पर,
चले गये सब अपनी डगर,
पुन: मिलने की उम्मीद लिए,
जीवन सफ़र के डगर पर।

 

 

प्रकाश यादव "निर्भीक"

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