Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तुमसे मिलने की आरजू थी बहुत

 

तुमसे मिलने की आरजू थी बहुत
पथरीला पथ प्रेम का होने न दिया

 

ख्वाबों में ही हम तुम्हें निहारते रहे
हवा का रुख प्रेमदीप जलने न दिया

 

कैसी है मेरी प्रेम कुसुम खबर नहीं
बाग में फिर से मुझे जाने न दिया

 

तुम्हारी भी तमन्ना थी मालूम मुझे
जमाने ने तरन्नुम को पाने न दिया

 

अमावश के बाद पूनम आती है सदा
प्रथा समाज की दीदार करने न दिया

 

मुख पे तिल और हंसी लवों की तेरी
मंजर वो सकुन कभी भूलने न दिया

 

पंखुड़ियाँ तेरे प्यार की बिखरे है यहाँ
आँचल तेरे मनुहार की उड़ने न दिया

 

आती है बारिश अब भी तो सारेआम
रुमाल तेरा दिया कभी भींगने न दिया

 

चाहत खेतू की थी कुँवर का होने की
कमबख्त मुगल ने उसे जीने न दिया

 

करता “निर्भीक” बयां ए मोहब्बत का
खूबसूरत साकी ने जाम छूने न दिया

 

 

प्रकाश यादव “निर्भीक”

 

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