तुमसे मिलने की आरजू थी बहुत
पथरीला पथ प्रेम का होने न दिया
ख्वाबों में ही हम तुम्हें निहारते रहे
हवा का रुख प्रेमदीप जलने न दिया
कैसी है मेरी प्रेम कुसुम खबर नहीं
बाग में फिर से मुझे जाने न दिया
तुम्हारी भी तमन्ना थी मालूम मुझे
जमाने ने तरन्नुम को पाने न दिया
अमावश के बाद पूनम आती है सदा
प्रथा समाज की दीदार करने न दिया
मुख पे तिल और हंसी लवों की तेरी
मंजर वो सकुन कभी भूलने न दिया
पंखुड़ियाँ तेरे प्यार की बिखरे है यहाँ
आँचल तेरे मनुहार की उड़ने न दिया
आती है बारिश अब भी तो सारेआम
रुमाल तेरा दिया कभी भींगने न दिया
चाहत खेतू की थी कुँवर का होने की
कमबख्त मुगल ने उसे जीने न दिया
करता “निर्भीक” बयां ए मोहब्बत का
खूबसूरत साकी ने जाम छूने न दिया
प्रकाश यादव “निर्भीक”
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