आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
भरत भारती का मैं बेटा
शेरों के संग पला बढ़ा हूं,
माँ का मान बचाने को मैं
इन शिखरों पर सदा चढ़ा हूं ।
अरिदल चढ़ आया सीमा पर
विकल हुई माँ भारती,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
नन्दन-वन के शेरों को
एक गीदड़ ने धमकाया है,
घर में बैठे-बैठे उसने
अपना काल बुलाया है ।
उस कायर की करतूतों को
सारी दुनिया धिक्कारती,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
उसके सीने की चौड़ाई
मेरी गोली नापेगी,
ऐसी दूंगा मौत, नरक में
उसकी रुह भी कांपेगी ।
‘बन जाऊंगी काल’
मेरी बन्दूक की नाल दहाड़ती,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
बनकर लावा अब फूटेगा
ठंडा बर्फ हिमालय का,
मेरा शोणित घोष करेगा
भारत माँ की जय-जय का ।
अरिमुंडों की माला के संग
भाव भरी हो आरती,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
काश्मीर की क्यारी को अब
अपने खूँ से सींचूंगा,
कारगिल के रश्मि-रथों को
अन्त समय तक खींचूंगा ।
अब तो मुझको बनना ही है
कृष्ण सरीखा सारथी,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
माँ के चरणों के वन्दन को
अपना शीश चढ़ा दूंगा,
जननी का जो दूध रगों में
उसका कर्ज चुका दूंगा ।
चलती जो हर सांस, इसी
माता ने मुझे उधार दी,
आज विदा की वेला आई
सरहद मुझे पुकारती ।
कवि – प्रमोद भंडारी “पार्थ”
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