एक व्यक्ति जिसका नाम रामकिषन है यू तो यह षारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से स्वस्थ्य और सम्पन्न है। पर फिर भी उसके मन में एक अनोखा विचार आया उसने सोचा कि उसे भीख मागनी चाहिए। और इसके लिए वह जगह तलाषने लगा जहां उसके पहचान के ना मिलें कुछ दिन परेषान होने के बाद एक मंदिर मिला जो उसके घर से काफी दूर था। और उसने उस मंदिर को अपने भीख मांगने का ठिकाना बनाया।
रोज षाम 6 बजे वह उस मंदिर के बाहर फटे कपडे पहनकर भिखारियों े वेष में बैठता और रात 9 बजे अपने घर के लिए प्रस्थान करता । करीब एक साल से अधिक का समय हो गया रोज 6 से 9 बजे तक भीख मांगने का सिलसिला लगातार जारी रहा। उस मंदिर में जो भक्त रोज आते थे। उस भिखारी को जानने लगे थे। भिखारी को भी उनके चेहरा याद हो गया था। एक दिन वह भिखारी (रामकिषन) सुबह के 9 बजे एक काफी हाऊस में बैठकर काफी पी रहा था। अच्छे कपडे पहने और हाथ में एक महंगा सा मोबाइल लिये उसे चला रहा था। वही उस भिखारी से कुछ दूर एक अन्य टेबल पर चार लडके बैठे थे । उन लडकों की नजर उस व्यक्ति (भिखारी ) पर पडी और आपस में कहने लगे कि:- ये तो वही है जो रोज षाम को मंदिर के पास बैठकर भीख मागता है। फिर चारों लडके थोडा संषय में आये और सोचने लगे कि यह व्यक्ति वह भिखारी नहीं हो सकता । इतना मंहगा मोबाइल, अच्छे कपडे और इस मंहगे से काफी हाऊस में आना संभव नहीं ऐसा वे चारों सोचने लगे। पर फिर उन्हें कहीं न कहीं षक हो ही रहा था। आखिर उस भिखारी का चेहरा वो पिछले एक साल से देख रहे थे। इन चारों लडकों से रहा नहीं गया। और आखिर कार उस व्यक्ति के पास पहुंच गये और उन चार लडकों में से एक ने पूछा कि:- आप वही है जो मंदिर के बाहर बैठकर भीख मांगते हैं। वह व्यक्ति थोडा हंसा और कहा हां मैं वही हूं। दूसरा लडका कहने लगा पर आप यहां कैसे ? व्यक्ति ने फिर वडी बेरूखी से जबाव दिया क्यो क्या भिखारियों को यहां पर आना पाबंद है क्या? तीसरा लडका गुस्से में आकर कहने लगा - हम आपके हालात पर दया खा कर आपकेा भीख देते थे। लेकिन आप तो यहां अय्याषी कर रहे हैं। आपने हम सबको बुद्धू बनाया है । हम लोग आपकी षिकायत पुलिस में अभी करते हैं।
वह व्यक्ति फिर थोडा सा हंसा और कहने लगा कि - मैने किसी को बुद्धू नहीं बनाया है। न तो मैं आप लोगों के घर गया कभी और न ही वहां आपसे मिलकर किसी तरह का कोई वादा किया जो बाद में पूरा न किया हो । मैं तो रोज मंदिर के बाहर बैठता था। जिसकी मर्जी होती थी तो वह मुझे दया और सहायता के रूप में चंद पैसे दे देता और न मैने इस भीख से कमाये पैसो से कोई होटल या जमीन खरीदी है । इन चंद पैसों का उपयोग तो मैने अपने रोजमर्रा के खर्च में किया है।
चारों लडके समझ गये कि इस व्यक्ति का इषारा किस तरफ है। और यह क्या कहना चाहता है। उस व्यक्ति ने अपनी बाणी में अल्प विराम देते हुए फिर कहा:- अगर आप लोग को बाकई किसी कि षिकायत करनी हे तो उनकी करो जिसे आप नेता, मंत्री की उपाधि दे चुके हैं। जो आपका विष्वास जीत कर संसद पहुंचे । उस महान और पवित्र स्थान पर जहां देष की दषा और दिषा तय की जाती है, संसद जहां देष और जनहित की बाते की जाने चाहिए । जहां जनता के मुद्दों से सरोकार होना चाहिए। वहां (संसद) में लोग इन सब बातों से परे होकर उस पवित्र स्थान (संसद) में बैठकर पोर्न फिल्में देखते और एक दूसरे पर मिर्च और स्प्रे डालते । गरीब जनता का पैसा अबैध तरीके से कमाकर करोड और अरब पति बने हैं। असली बुद्धू तो इन लोगों ने हम सब को बनाया है। तुम लोगों को इनकी षिकायत करनी चाहिए। मेरी इस छोटी सी बात और चंद पैसों के लिए षिकायत कर तुम लोगों को क्या हासिल होगा । यह कहकर उस व्यक्ति ने अपनी वाणी को पूर्ण विराम दिया। चारों लडकों ने उस व्यक्ति की बात ध्यान से सुनने के बाद एक लडके ने वेटर को आवाज लगाई । वेटर उस जगह तुरंत हाजिर हो गया। और कहने लगाः- जी सर, एक लडके ने कहां- इनका (रामकिषन) का बिल कितना हुआ। वेटर ने देखकर कहां सर 60 रू. उन चार लडकों में से एक ने उस व्यक्ति का बिल चुकाया और चारों चुपचाप वहां से बाहर निकल आये ।
प्रमोद पाण्डेय
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