Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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‘ज्ञान की न कोई सीमा और न अंत

 

 

तीन लड़के एक ट्रेन में सफर कर रहे थे। जिनकी उम्र 21 से 22 वर्श के बीच होगी । तीनों अपनी बातों में मस्त थे । कुछ वक्त बाद एक स्टेषन पर ट्रेन रूकी कुछ लोग ट्रेन से उतरे तो कुछ यात्रा करने के लिए ट्रेन के अंदर आये ! उनमें से एक व्यक्ति आकर इन तीन लड़कों के सामने वाली सीट पर बैठ गया। कुछ देर में ट्रेन चली, सामने बैठा व्यक्ति कभी खिड़की से बाहर देखता तो कभी उन तीनों लड़कों की बाते सुनने लगता, कुछ देर बाद आखिरकार वह अकेला व्यक्ति उन तीनों लड़कों की बातों को ध्यान से सुनने लगा ! तीनों के बीच फिल्मों की बात हो रही थी! एक लड़का बोला वो फिल्म ठीक नहीं थी। दूसरा बोला उस हीरो ने क्या एक्टिंग की थी। तो तीसरा बोला - इस साल का राश्ट्रीय पुरस्कार फलानी फिल्म को मिलेगा। कुछ इस तरह की बातें उन तीनों के बीच चल रही थी। और वों तीनों सोचते थे कि हमसे ज्यादा फिल्मो के बारे और किसी को पता नहीं होगा। कुछ वक्त बीता तीनों लड़कों में से एक ने सामने बैठे व्यक्ति से पूछा अरे भाई साहब आप फिल्में देखते हैं। व्यक्ति ने हंसकर जबाव दिया हाँ। दूसरे लड़के ने पूंछा - आपकी पसंदीदा फिल्म कौन- सी है ? सामने बैठा व्यक्ति फिर हँसा और कहने लगा मेरी कोई एक फिल्म पसंदीदा नहीं है! ब्हुत सारी मेरी पसंदीदा हैं। उनमें से कुछ चंद फिल्में ये हैं। पहली तो मेरी , जय - वीरू और गब्बर वाली फिल्म जिसका नाम मुझे याद नहीं आ रहा है । वो मेरी प्रिय फिल्म है। तीनों लडकों ने तुरन्त कहा षोले उस व्यक्ति ने भी कहा हाँ षोले, तीनों लड़के आपस में कहने लगे सोचो भाई साहब को इतनी प्रसिद्ध फिल्म का नाम नहीं पता। खैर उस व्यक्ति अपनी दूसरी फिल्म कुछ इस तरीके से कि ‘‘बी.आर.ईषारा ’’ द्वारा निर्देषित - ‘‘जरूरत’’ मेरी प्रिय फिल्म है और तीसरी मेरी प्रिय चेतन आनंद की ‘‘ नीचा नगर’’ है। और चैथी गोबिंद नहलानी की ‘‘आक्रोष’’ मेरी पसंदीदा फिल्म हैं। इसके अलावा मेरी कुछ प्रिय फिल्में ‘‘गरम हवा’’, दो बीघा जमीन, अर्द्ध सत्य, अंकुर, निषंात, दो आंखें बारह हाथ और दामुल, मेरी पसंदीदा फिल्में हैं । इतना सब सुनने के बाद तीनों लड़के आष्चर्यचकित रह गये। और एक दूसरे की तरफ देखने लगें। और सोचने लगे कि हम अपने आप को फिल्मों का ज्ञाता समझ रहे थे । और हमने तो इन सब फिल्मों के इससे पहले नाम तक नहीं सुने थे।
सारांष या सीख:- कहानी का सारांष यह है कि जरूरी नही कि जो आदमी आपके सामने बैठा आपकी बात बड़ी षालीनता से सुन रहा हो उसे उस विशय का ज्ञान न हो ।
क्योकि न ज्ञान की ओई सीमा है और न कोई अंत ।

 

 


लेखक
प्रमोद पाण्डेय

 

 

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