दीवाली आऎगी, चली जाऎगी और शुरु होगा अगले त्योहार का इन्तजार। जीवन चलता रहेगा।
हमे तो चलते ही जाना है। । कोई न कोई राह मिल ही जाऎगी। सबका अपना अपना जीवन है । जिस चीज का खोने का बहुत डर हो, उसके बिना जीने की आदत डाल लेनी चाहिए (थी)।
चिंता है तो अर्थी को कंधे की। परिवार छोटे हो गए हैं। जो बचा था उसमें भी “धी जमाई ले गये, बहुएं ले गईं पूत, बुढ्ढा बुढ्ढी रह गये ऊत के ऊत”॥ पहले सोचा देह दान करदें, फ़ार्म पर फोन नम्बर देने को ना (so called) रिश्तेदार तय्यार ना पड़ौसी। जो कुछ जोड़ा बटोरा है वह धीओं और पूतों को अभी चहिए, मरने का इन्तजार क्यूँ? दुख बीमारी के डर से जोडा बटोरा दिया नही, तो नाती पोते भी दूर कर दिए।
यह सब सोच फैसला लिया सब दान कर देंगे। पर सुपात्र नही ढूंढ पाए। अब सोच लिया है क्यों दान करें? क्यों अर्थी के लिए कंधो की चिंता करें। दो में से जो एक रह जाऎगा वह रिक्षा वालों को बुला लेगा। जिन्हों ने हमें जीवन भर ढोया वह अन्त में भी आखिरी मंजिल तक पहुचा ही देगें। एकदम ईमानदारी से, जितनी दूरी, जितना बोझा उतना किराया। बाकी का काम तो फिर भी शमशान के पंडित ने ही करना है, मुर्दा चाहे रिश्तेदार लाएं या रिक्षेवाला?
अब जो रह जाऎगा उसे काहे की चिन्ता? मरने के बाद जब दो चार दिन बाद बदबू फैलेगी तो पड़ॊसी पुलिस को फोन करेंगे ही। क्रिया कर्म हो न हो मिट्टी तो ठिकाने लग ही जाऎगी। पड़ौसी चैन की सांस लेगें। किसी न किसी तरह खबर तो बेटॆ, बहू, धी, जमाई सबको हो ही जाऎगी। फिर शुरु होगा नाटक। अड़ौस पड़ौस सब एकत्र होगा बेटों के संग सहानभूति जताएंगे। अपनी असमर्थता जताऎंगे कि उन्हे तो पता ही न चला की कब क्या हो गया। पड़ोसियों के जाते ही शुरु होगा खोज बीन का सिलसिला। भगवान के आगे रखी रेजगारी भी बांट लेगें। पूरी शिद्दत से बैंक एकाउंट से पैंशन की बची खुजी रकम निकाली जाऎगी, पटवारी और तहसीलदार के तलुऎ चाटेंगे। माँ-बाप को माँ-बाप कभी माना नहीं, अब उन्ही के वारीस घोषित कराना तो मजबूरी बन गया है। बहुऎं परेशान हैं – सास की नाक की सोने की लौग कहाँ गई? चेन कहाँ है? ये कहाँ है, वो कहाँ है? जरुर पड़ोसी ने हड़प लिया होगा।
ये वही बेटा और बहु है जो एक दूसरे पर कितना फख्र करते थे जब इनमें से एक अपनी माँ/सास से बदजुबानी करता था। तेरहवीं तो करनी ही होगी वरना लोग क्या कहेंगे? यह आखिरी जतन है लोगो को यह जताने का की हम तो देखो कितने लायाक है, वह तो हमारे माँ-बाप ही लायक नही थे।
यह कहानी अनवरत नये किरदारों के साथ घटित होती रहेगी। क्योंकि जब तक स्वं पर घटित ना हो जाए सब अपने को सुरक्षित समझ मुझसे मेरी, बेटॆ बहू से उनकी सी करते रहेंगे। किसी ने ठीक ही कहा है _
’आजकल हक है उनको जीने का, जो इधर का लगता रहे और उधर का हो जाए’
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