सकून
वो अपनी शरीके-हयात को लेकर चले गये हैं
सिसकती माँ और सहमें से बाप को छोड़ गये हैं
माँ तो अब भी समझ न पाई क्यों खफा हो गये हैं
ऐसा क्या हुआ पेट के जाए भी बेबफा हो गये हैं
दिन हफ्ते हुए, महीनें सालों में बदल गये हैं
आँख के आँसू दरिया से समुंदर बन गये हैं
पर
लाट साहब बहुत खुश हैं अपने सास ससुरे को सकून देकर।
उनकी बेटी और अपने को जिम्मेदारी से बचा कर ले गये हैं॥
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