आज फिर माँग रही जिंदगी,
जीने की कीमत कोई।
आज फिर माँग रही ख़ुशी,
हँसने की वजह कोई।
मेरे अपने भी अपनत्व का,
माँगे है किरावा,
राह का पत्थर बन गया हूँ,
ठोकर ही मारे कोई।
आज फिर माँग रही जिंदगी,
जीने की कीमत कोई।
अब तो हवा में जहर घुला,
कैसे लूँ साँस कोई।
प्रणव किसे अपना मानू यहाँ,
सब के चेहरे मुखौटा कोई।
सौप दूँ जिसे दिल की लगाम,
ऐसा फरिश्ता नही,
किस्मत,आज बुलंदियों पर हूँ,
सुन था इसके पीछे कोई।
आज फिर माँग रही जिंदगी,
जीने की कीमत कोई।
कल तक मैं जब अमीर था,
हुजूरी करते थे कोई।
आज फुटपाथों का व्यापारी,
मुँह पर थूका नही कोई।
और ज़माने बाँवले सुन ज़रा,
रिश्तों में न पड़ना कभी
जिसने भी किये हैं अब वादे,
पूँछना पहले निभाए कोई?
आज फिर माँग रही जिंदगी,
जीने की कीमत कोई।
-----प्रणव मिश्र
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