मैं डर रहा बार बार
एक तूफ़ान उठता है
रात में सो नही पाता
मानो कुछ डरा रहा
मेरा सब कुछ पाया
कल कहीं खो जायेगा
मैं भीड़ में पाता था
आज नायक बना हूँ
पर किस का नायक
अपने झूठे अहंकार का
अपने झूठे मान का
असल में झूठ ही जीवन
मैं कुछ भी नही नही नही
बस एक गुब्बार खुद में
जो लोगों के उपहास से
फूलता जा रहा जा रहा
एक दिन फूट जायेगा वो
गुब्बार,मिट जायेगा मेरा
अहंकार अहंकार अहंकार
--प्रणव मिश्र'तेजस'
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