साल पुरानी डायरी के चार पन्ने,
नीली स्याही में लिखे वो चार अक्षर,
जो तुमने लिखे थे
मैं अक्सर पढ़ लेता हूँ।
पुराने मर्ज की तरह है याद तुम्हारी
तो रात को पानी के साथ
वो पन्ने पलट लेता हूँ।
जब तुम बात नहीं करती
ऐसे बात कर लेता हूँ।
मगर अब सिर्फ पन्ने पलटना अखरता है,
कुछ बात करने को जी करता है।
प्रदीप सिंह चम्याल 'चातक
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