Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वीर उठो

 

सो चुके हो वीर तुम आज
प्रिये के उन बाहु पाश में!!
भूल सारी क़ुरबानी खून की
उलझ गये हो आकाश में

 

सँवारते हो अलकें जिनकी
कल लुटेगी वो बाजार में!!
रे डाल कर पीते रहना तुम
कायरता को यूँ सिगार में

 

करो चाटुकारी उनकी तुम
जो बेंचे देश को व्यापर में
बटो और बाँटो देश को तुम
जाति औ मजहबी प्यार में

 

फँसे हो युवा तुम आज सिर्फ
दुनिया के इन व्यर्थ काज में
देखो देखो माँ की इज्जत है
झुकी सिर्फ औ सिर्फ लाज में

 

आ गये है वो फरेबी हमारी
ही सरज़मीं की नस्लों में
रे अब भी क्या शांत रहोगे
छुपे रहोगे माँ में पल्लों में?

 

उठो युवा आज तुम्हे फिर
इतिहास को दोहराना है।
इतिहास के पन्नों में होकर
अमर,कायरता मिटाना है।

 

झकझोड़ कर खुद को तुम्हे
आगे बढ़कर चले आना है
एक नही लाखों विवेकानन्द
इस देश को आज सौपना है

 

 

 


©प्रणव मिश्र'तेजस'

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ