मरुथल-भूमि यहाँ है सारी,
मखमल का ये नहीं बिछौना।
प्रतीकार दुस्तर अपनाकर,
झूठे नेहों से तुम बचना।
दृष्टि सदा संशय की रखना,
बेटी ! सावधान तुम रहना ।
सारे यहाँ गिद्ध रहते हैं
सिर्फ नोचना ही जाने हैं।
दूर-दृष्टि रखकर फिर छल से,
लक्ष्य सभी इनको पाने हैं
मानवीय गिद्धों को तजना,
बेटी ! सावधान तुम रहना ।
स्वांग बड़े रचकर आयेंगे।
तेरे साथी बन जायेंगे।
मौका पाते ही ये दुर्जन
छुपा रूप दिखला जायेंगे।
दुर्गा ! प्राण पाप के हरना,
बेटी ! सावधान तुम रहना ।
कोलाहल की मिथ्या नगरी,
कहीं न संवेदनाएँ गहरी।
मरु की मृग-मरीचिका देखो,
एक छलावा, जल की गगरी।
अंतर्मन की लौ बन जलना।
बेटी ! सावधान तुम रहना ।
दिल में तुम सारल्य बसाना।
लोलुपता में ना पड़ जाना।
पल भर की खुशियों के चलते,
संस्कार को मत ठुकराना।
याद पूर्वजों को तुम रखना ।
बेटी ! सावधान तुम रहना ।
-----प्रणव
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