Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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भावों की आँधी धूल भरी

 

भावों की आँधी धूल भरी
उड़-उड़ गिर गिरकर दौड़ चली।
कवि मानस पर अंकित होने
देखो शब्दों में होड़ लगी

 

तुम उसी समय दस्तक देना
तुम मेरी कविता बन जाना

 

कल्पना मेरी मरू-स्थल में
प्यासी होकर दम तोड़ रही
सागर दिख दिख गायब होता
राहें राही को छोड़ रहीं

 

तब तुम आशा बन आ जाना
तुम मेरी कविता बन जाना

 

मैं जब वृक्षों सा चुप हो कर
बस खड़ा रहूँ यादें लेकर ,
तुम उसी वक्त रस्ता बनकर
आ जाना मेरे ढिग चलकर

 

बनकर राहें संग में चलना
तुम मेरी कविता बन जाना

 

ये नमकीनी ताने मुझपर
वर्षा जैसे जब बरस पड़ें
तुम बनकर छप्पर आ जाना
मन पर जब बादल बरस पड़ें

 

साँसे बनकर के ढल जाना
तुम मेरी कविता बन जाना

 

 

©प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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