भावों की आँधी धूल भरी
उड़-उड़ गिर गिरकर दौड़ चली।
कवि मानस पर अंकित होने
देखो शब्दों में होड़ लगी
तुम उसी समय दस्तक देना
तुम मेरी कविता बन जाना
कल्पना मेरी मरू-स्थल में
प्यासी होकर दम तोड़ रही
सागर दिख दिख गायब होता
राहें राही को छोड़ रहीं
तब तुम आशा बन आ जाना
तुम मेरी कविता बन जाना
मैं जब वृक्षों सा चुप हो कर
बस खड़ा रहूँ यादें लेकर ,
तुम उसी वक्त रस्ता बनकर
आ जाना मेरे ढिग चलकर
बनकर राहें संग में चलना
तुम मेरी कविता बन जाना
ये नमकीनी ताने मुझपर
वर्षा जैसे जब बरस पड़ें
तुम बनकर छप्पर आ जाना
मन पर जब बादल बरस पड़ें
साँसे बनकर के ढल जाना
तुम मेरी कविता बन जाना
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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