फिर ये कैसा प्रणव भेदभाव,
कैसा ये भेदभाव?
मानवता में हो रहा अलगाव,
कैसे ये अलगाव?
हँसी भी मेरी उनके जैसी,
रोने में क्या बदलाव?
पलके उसकी शर्माती सी,
क्या प्रेम उसका छलाव?
प्रणव कैसा है ये भेदभाव?
तन जो मेरा ढके वसन है,
है वही उनका पहनाव।
प्रणव रोज मंदिर जाता है,
क्यों फिर मैल का जमाव?
प्रणव कैसा है ये भेदभाव?
बोली तो मेरी प्यारी हिंदी है,
उर्दू में प्रेम का छिड़काव।
देश तो मेरा देवभूमि भारत है,
है वही उनका भी घराव।
प्रणव कैसा है ये भेदभाव?
हाँथ खोले जमीं बुलाती है,
वहीं तो होगा मेरा ठहराव।
वही जमीं उन पर मरती है,
इसी से उन्हें भी गहरा लगाव।
प्रणव कैसा है ये भेदभाव?
-----प्रणव मिश्र
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