Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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दूर जाना चाहता हूँ इस फरेब से

 

दूर जाना चाहता हूँ इस फरेब से,
आग की लपट हूँ बुझता ऐब से।
न फैलाओ तुम हाँथ लाचारी का
कहीं वर्थ न जाये सिक्का जेब से।

 

आग की लपट हूँ बुझता ऐब से।

 

झूठी साज़िशों का मैं प्रतिमान हूँ,
सह कर अपमान भी गतिमान हूँ।
कौन कहता निभाओ रिश्ता कोई,
मैं तो अब तक खुद ही से अनजान हूँ।

 

झूठी साज़िशो का मैं प्रतिमान हूँ।

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

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