एक बात पुरानी है समय से परे
तुम जब मेरे साथ रहा करती थी
उन सूने वीराने जंगलों में और
आँखों से बस जाती थी मेरे दिलमें
जहाँ कोई शोर न था
और कोई छोर न था
पतली सी पग डंडी थी
जिस पर तुम्हारे निशां मिलते
बारिस के समय अनन्त आकाश से
बूँदे हल्की हल्की डालों और पत्तियों पर गिरकर पग डंडी पर आ सिमटती।
धूल में सिमटने से
बारिस की बूंदों से पग डंडी
भीग जाती थी
और तेरे पैरों के दाब से ही
वो गीली मिटटी साँचे में बदल जाती।
और जब सूखती,इन्ही को देख कर मैं
तड़पता जब तुम नही आती।
पैरों में बंधी नूपुर की रुनझुन
तेरे आने का संकेत थी
ध्वनि तरंगो से विहग चहचहाते
समीर मन्द मन्द सौंधी खुशबू लिए
बहने लगती थी।
फ़ूलों से लदे पेड़ फूलों को बरसा
देते थे।
ताकि तेरे कोमल कोमल पैरों में
रत्ती भर भी दुखन न हो।
एक दिन यही पूरी दुनिया तेरे इन्तेजार
में बाहें पसारे बैठी थी।
पर तुम न जाने क्यों नही आई?????
मैं बूत बना बैठा था राहों पर टकटकी
लगाये..............
तुम न आई न आई।
एक दिन दो दिन फिर महीने बीते
जैसे तैसे मैं शरीर ढोता रहा।
फिर उन्ही पदचिन्हों को देखा पग डंडी वाले और
आँसू फूट पड़ा,,,रोता रहा,बिल्कता रहा
साँसे गिनता रहा।
पेड़ो ने उस दिन फिर फूल बरसाये
चिड़ियां हद से ज्यादा चहचहाई
मन्द समीर न बही,,,तूफान आया।
क्यो..............??????????
क्योंकि मेरे रोने से पदचिन्ह मिट गए थे
और आने की आशा तेरे आखिरी निशा
मिट चुके.....और मेरी साँसे रूक गई थी।
तभी सबने प्रकृति ने मेरे प्रेम को सलामी
दी थी।
आज भी वहाँ मैं लेटा हूँ तेरे इन्तेजार में
की कभी तुम आओगी
और फिर से फूल बरसेंगे और मैं तुम्हारी
गोद में सर रखे हमेशा के लिए सो जाऊँगा।
प्रणव मिश्र'तेजस'
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