Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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गुरु और शिष्य

 

 

कोई भी जगत में पूर्ण नही हर व्यक्ति सामान भी नही ,सब एक दूसरे से एक भिन्न स्तर के आयाम पर खड़े है।तुम थोड़े ज्ञानी हो तुमने खुद से मूर्ख भी देखे होंगे और खुद से विद्वान भी और धर्म गुरु की प्रजाति भी देखने को मिल जाती पर ,,,ये सब भिन्न क्यों?आखिर गुरु है किस चिड़िया का नाम और वो भिन्न स्तर क्या है?
रामचरित मानस एक आधार पर देखूं मैं तो जो हमे अज्ञान से ज्ञान की ओर ले जाये गुरु...पर कभी कभी पेड़ पौधे ,कुत्ते-बिल्ली और निर्जीव भी ज्ञान दे देते तब वे क्या गुरु है?हर व्यक्ति में स्वयं की शक्ति है और जिनमे नही वे किसी न किसी तरीके से जागृत कर सकते गुरु वही जागृत आत्मा है जो तुम्हे जागृत कर सकती।एक बुझी मोमबत्ती को जली हुई जला सकती।
गुरु और शिष्य में गुरु क्या जान गए होंगे आप पर क्या होता ये शिष्य?जो ज्ञात है वो गुरु और ज्ञेय(ज्ञान लेने वाला)शिष्य ।अब ये देखना भी उचित है की क्या गुण हो ज्ञान देने वाले में और लेने वाले में?
शिष्य पर चर्चा करते है की शिष्य कैसा हो?शिष्य के तीन गुण होने चाहिए-
1-पवित्रता
2-यथार्थ
3-ज्ञानपिपासा

1-शिष्य का शिक्षा लेने का मंतव्य क्या है?
2-वह व्यक्तिगत लाभ के लिए सब कर रहा?
3-वह यथार्थता को स्वीकार सकता?
4-उसमे उस ज्ञान को पीने का सामर्थ्य है जो गुरु पिला रहा।
5-उसके मन में गुरु के प्रति आदर है।
अच्छा कभी मंदिर गए जो चप्प्प उतार देते होगे तुम क्यों?क्योंकि उस भूमि को तुम पवित्र समझते हो ।जहाँ राम-नाम लिखा उस पर थूकते नही ,मूतते नही क्यों की वो पवित्र है तुम्हारे हिसाब से जबकि ईश्वर तो कण-कण है ?पर आप की दृष्टि में वो ज्यादा पवित्र और ईश्वर के निकट है उसी प्रकार जो इंसान दिन रात निष्काम ईश्वर का नाम ले तो वो महान है या नही??निश्चित रूप में आप से श्रेष्ठ है इसलिए गुरु का सम्मान करना चाहिए....आपने ईश्वर को नही देखा जब की आप ने उसके बारे में केवल कल्पना की ,अगर आप को पेंसिल और पेपर पकड़ा दिया जाये जो जाने कैसी शिव की मूर्ति बनायेंगे आप चित्र में,तो क्या वह ईश्वर है?आप की कल्पना केवल मनुष्य तक जाती,अगर आप भैस होते तो आप सोंचते बड़ी भैस ईश्वर है ,,,ईश्वर तर्को और सिद्ध करने का विषय नही,बस इतना मानना सही की वो जरूर ही हमसे श्रेष्ठ है उसी भाँति गुरु भी हमसे उतना ही श्रेष्ठ इसलिए गुरु को ईश्वर का दर्जा देते।

बात आती गुरु कैसा हो?

चेला बहुत अच्छा मिला गया पर गुरु ढपोर शंख हो तब?गुरु में भी कई गुण होने चाहिए-
1-गुरु केवल शास्त्रो को पढ़े न हो अपितु उनका मर्मज्ञ हो।क्यों की पढ़े लिखे तो सभी है।किताबे हमे बहुत ज्ञान देती,कोई भी तर्क कर सकता उनके बल पर पर कुछ करने की प्रेरणा की शक्ति का संचार गुरु ही करता ।अतः गुरु शास्त्रो का मर्मज्ञ हो।
2-उसका कोई निजी लाभ न हो आप को शिक्षा देने में।
3-निष्पाप हो,निष्कपट
4-तुम्हारा भूत जनता हो ,भविष्य बता सके और भविष्य देख कर वर्तमान को उचित ढंग से उचित दिशा में ढाल सके।

क्या सूर्य का तेज आप के मांगने से मिलता..क्या पेड़ के फल आप की इक्षा से मिलते?उसी भाँति समय आने पर उचित गुरु स्वयं मिल जाता।

 

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

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