Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हमारी अव्यक्त कथा

 

हमारी अव्यक्त कथा ,अनसुनी कथा जो शायद किसी कवि ने लेखक ने अब तक न लिखी हो,अरे लिखे भी कैसे जब उन्हें उनकी कमलमुई प्रेयसि से फुरसत मिले।विरह में कवि ने मानो धतूरा खा लिया और बस अर्जुन वाली चिड़िया का उदाहरण ले उसी कलमुई के पीछे अंधे शर चला रहा ,पर गए हुए लौटें हैं क्या????
खैर ये हमारी कहानी इसमें इन स्वार्थियों और विक्षितों का क्या काम?मैं अपना परिचय भूल गई;मैं राह हूँ ,कच्ची डगर जिस पर तुम जंगल में दिशा ज्ञात करते।और ये मेरे प्रेमी वृक्ष जिसकी तुम छाया पाते जब थकते उसकी कहानी ।
ओह वृक्ष मेरे ,,प्रियतम ,,,मेरे सदियों के साथी तुमने हमेशा मुझे कितना प्रेम किया । तुम सदियों से मुझ पर अपने हाँथो से छाया करते हो चाहें बेमौत मारती धूप रही , पगलाई बलखाती तेजी वाली तूफानी आँधी हो या ओला वृष्टि हमेशा तुमने मुझे बचाया जैसे एक प्रेमी नि:स्वार्थ प्रेम करता।तुमने मुझे हाय रे कितने उपहार दिए हैं मैं तो शर्मा ही जाऊँ,,अपने नटखट पुष्पों से मुझे छेड़ते हो और पतझड़ में अपने पत्ते उपहार स्वरुप दिए और स्वयं बिना अपनी परवाह किये तुम बिना पत्तों के कुरूप बन के खड़े रहे ताकि मैं वस्त्रों से लद जाऊँ।भूखी थी मैं तब तुमने अपने मीठे मीठे फल पक्षियों द्वारा चखवाकर भेंट किये ताकि मुझे खट्टेपन का अनुभव न हो।सच बोलूँ उस प्रेम के नीचे मैं दबी हुई हूँ और न कभी उस से ऊपर निकल सकती।तुम इतने बड़े होते हुए भी झुक जाते मेरे गाल पर आये आँसुओं को पोछने के लिए पर मैं तो कभी तुम तक आ ही न पाई शर्म और लोक लाज त्यजकर। मेरे प्रेमी वृक्ष मुझे माफ़ करना......।
इसपर भी आप की सहृदयता का जवाब नही आप कहते हो मैं आप की अर्धांगिनी हूँ और ये दुष्ट मनुज जो आप को कष्ट पहुँचते आप के पुत्र हैं और मैं इन्हें दिशा का ज्ञान कराकर भटके हुए पथिक को गंतव्य तक पहुँचाकर आप पर उपकार करती,,,,हुह ये बात आप की मुझे ज़रा भी नही पसन्द । इन्ही बातों से ही आप छेड़ते है मुझे। ये हमारी अनसुनी कहानी इन स्वार्थियों को कभी नही सूझेगी क्यों की हम निष्काम प्रेमी और ये घोर स्वार्थी जो अपने पिता तुल्य वृक्ष को भी मृत्यु शैया पर पहुँचाने में ज़रा भी देरी नही लगाते और तो और प्रियवर तुम्हारी लाश को तक मेरे पास नही छोड़ते उसे भी ये बेंच डालते।
अरे ये क्या आप रोने लगे ,,कभी कुछ बोलने नही देते वर्षों से आप के इन्ही आँसुओं को ही घूँट-घूँटकर तो मैं चुप हूँ ।अच्छा बाबा कुछ नही बोलती शांत हो जाओ आप और कोयल से बोलो
कोई मधुर तान सुनाये,,,,,,,,,,,,,।

 

 

 

---प्रणव मिश्र'तेजस'

 

 

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