Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हे प्रियतम

 

 

हे सर्वशक्तिमान !!
शिव स्वरुप
अनन्त तेज वाले
ब्रह्मचारी
मेरे प्रियतम....
क्यों नाराज हो प्रिय??
कोई कारण दो आकर दो
तुम्हारी याद आया करती पर अपनी,
याद को भुलाने में और मुझे उलझने में,
सदियों से माहिर हो.कुछ कुछ शायद
हाँ कुछ अपने अस्तित्व को पहचानता
तुम्हे भी अच्छे से जनता हूँ ।
पर यूँ आये शताब्दी पूर्व और चले गए।
मैं अब तुम्हारे बिना कैसा हूँ कभी सोंचा
कितना व्याकुल होता हूँ,रोता घण्टो;
पर कौन चुप करवाये आकर..??
लोग पागल और ढोंगी कहते मुझे कष्ट न,
पर तुम कभी आये नही मिलने,दुःख है
शायद इतना नीच हूँ.तुम्ही तो कहते थे
अमृत पुत्र,उस परम पिता की संतान हूँ।
अगर जान पाया की सब जानते हुए भी तुम,
मुझसे मिलने नही आये,तो कभी बात छोड़ो
देखूँगा भी नही...।
तुम्हारे चित्र के आगे,मूर्ति के आगे रोता पर
वो भी तुम्हारी तरह केवल निष्ठुर।
तुम कहते हो प्रेम करो इन सब से आओ देखो
कितना प्रेम किया इन्हें बिना उनसे प्रेम माँगे
मैं आँख भर बस एक बार तुम्हे देखना चाहता
फिर चले जाना उसी लोक जहाँ बैठे हो..
नही सहन होती विरह मेरे महादेव
आज फिर एक दिन बीता जाता की तुम आओगे
अच्छा न आओ...पर कब आओगे यही बताना
प्रतीक्षा में है ये पागल...

 

 

ॐ तत्वमसि ॐ....

 

 

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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