Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जब आघातों पर आघात हुआ करता

 

जब आघातों पर आघात हुआ करता।
सूखे घावों पर नमक लेप कोई करता।
जब असफलता डकिन आलिंगन देती
अपने ही बच्चों को डायिन खा जाती।
जब अपने निर्झर कोई मनुज यूँ पीता।
मानो विरह प्रेयसि,उसी लिये हो जीता।
तब कोमल हृदय इक परिवर्तन आता।
कोई नव युवक दीवाना कवि हो जाता।

 

जब दुनिया बस धिक्कार रही होती है।
नमकीनी शब्दों से ये मार रही होती है।
जब व्यापारी मन को बड़ा घाटा होता ।
व्यापारी सन्यासी होने को आतुर होता।
जब देह-विदेह के सुख नही सूझते हैं ।
चुपके चुपके बेगाने अपने आँसू पीते हैं।
तब लोक लाज कोई पगला त्यज देता।
कोई नव युवक दीवान कवि हो जाता।

 

कविता के संग ही दिन-दिन बाते होती।
उसकी दिनचर्या में कविता ढली होती।
मौका मिलते आकुलता से उसे चूमता।
ज्यों हारे राजा को मिल गई फिर प्रभुता।
रे जीना मारना उसका हो गई कविता।
तरसे नयनों से कविता पढ़ जल बहता।
सब बंधन तोड़ वो रातों मे उसे पूजता।
कोई नव युवक दीवान कवि हो जाता।

 

 


---प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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