Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जग नाम अघोरी लेता था

 

 

मैं हृद मुख पर भस्म रमाये
निर्बाध अकेले चलता था
रिश्तों को आहुति देकर
श्मशान हवाले करता था

 

यादों की राख चिलम भरे
झोली में अपनी रखता था
जब मन होता राह कभी
मैं यादों का धुँआ उड़ाता था

 

प्रति पग से ठोंकर पृथ्वी को
रातों को मैं निकलता था।
कभी रात्रि श्मशान दिखा
जग नाम अघोरी लेता था।

 

 

©प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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