Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जल उठी हृदय में विदग्ध ज्वाला

 

जल उठी हृदय में विदग्ध ज्वाला,
मिली तुझसे नयन अश्रुधार जो।
पंक में कमल मुरझाया - जला,
भँवरे बिन था वो , उदास जो।

 

प्रेम विरह वो मनुज क्या जाने?
संग कि था जिनके परिवार जो।
राम से पूंछो कैसे थे दिन,
थी न जब संग जगतजननी जो।

 

प्रणव मिश्र'तेजस'

 

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