Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जाने वो कैसी होगी

 

इक आग सी बढ़केगी,ठंडी फ़िज़ा में,
सामने हमारे जब वो आयेगी
आँखों में ले के नीर उधार,देखते ही
उसको हमारी हृदयगति रुकेगी

 

छल्ले से उलझे या उलझे से छल्ले
होंगे काले से केश उसके घनेरे
फिर सुमुखि हँसकर अलकें सजाकर
आयेगी मतवारी चाल में नेरे

 

मुझसे कहेगी,मुस्काकर ओ कवि जी
लिखते थे तुम्ही,गीत;हमारे अधूरे
लो आ गई हूँ,पुकार से जल्दी हूँ आई
देखो जीभर,करो श्रृंगार गीत रे पूरे

 

उतरेगी अप्सरा सी खुशबू वो लेकर
दीनो के दुखों को हरती चलेगी
जिस मार्ग पर हूँ मैं खड़ा अब अकेला
कल वो आकर साथ मेरे बढ़ेगी

 

जाने वो कैसी होगी परी;
जो सिर्फ मेरे लिए ही बनी.....

 

 


©प्रणव मिश्र'तेजस'

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