जिंदगी कुहासे में छिप न जाये कहीं
शाम फिर कभी वो आकर सताये कहीं
(कुहासा=कुहरा)
फूल ज्यों दिखा आँसू है निकलता रहा
अब जुबान तेरा गाना न गाये कहीं
ओस से बुझी प्यासें हैं सताती मुझे
याद सब तिरी रस्ते छोड़ आये कहीं
प्यार धोख खेतों वाली है "तेजस"सुनो
भूल जा उसे कविता हम सुनाये कहीं
©प्रणव मिश्र'तेजस'
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