Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जिंदगी कुहासे में छिप न जाये कहीं

 

जिंदगी कुहासे में छिप न जाये कहीं
शाम फिर कभी वो आकर सताये कहीं
(कुहासा=कुहरा)

 

फूल ज्यों दिखा आँसू है निकलता रहा
अब जुबान तेरा गाना न गाये कहीं

 

ओस से बुझी प्यासें हैं सताती मुझे
याद सब तिरी रस्ते छोड़ आये कहीं

 

प्यार धोख खेतों वाली है "तेजस"सुनो
भूल जा उसे कविता हम सुनाये कहीं

 

 

©प्रणव मिश्र'तेजस'

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